ऋग्वैदिक काल में नारी को बड़ा आदर और सम्मान प्राप्त था। वे अपनी योग्यता के अनुसार शिक्षा ग्रहण करती थीं।
विश्वआरा, घोषा, अपाला आदि तो इतनी विदुषी स्त्रियाँ हुई हैं कि उन्होंने ऋग्वेद के मंत्रों की रचना की।
स्त्रियाँ गृहस्वामिनी मानी जाती थीं और सभी धार्मिक कार्यों में अपने पति के साथ भाग लेती थीं। पर्दे की प्रथा नहीं थी।
स्त्रियाँ स्वच्छन्द रूप से घूम फिर सकती थीं। इस काल में सती प्रथा नहीं थी। बहु विवाह का प्रचलन नहीं था।
स्त्रियों सैनिक शिक्षा भी दी जाती थी। वे अपने पतियों के साथ युद्ध भूमि में भी जाती थी।