देवराज द्वितीय की मृत्यु के बाद राज्य में अव्यवस्था फैल गई। उत्तराधिकार का नियम निश्चित नहीं होने से राजगद्दी के लिए गृह युद्ध का सिलसिला आरंभ हो गया।
इस अवसर का लाभ उठाकर नायक स्वतंत्र हो गए मंत्री और पदाधिकारी शक्तिशाली बन गए और जनता पर करों का बोझ बढ़ गया।अयोग्य और निर्बल शासकों के समय में साम्राज्य के प्रतिद्वंदियों आक्रमण तेज कर दिए।
उड़ीसा के गजपति और बहमनी सुल्तान ने विजयनगर समराज के बड़े भाग पर कब्जा कर लिया। राय का प्रभाव कर्नाटक और पश्चिमी आंध्र के कुछ भागों तक ही सिमट कर रह गया।
ऐसी परिस्थिति में सुलुव नरसिंह ने अन्य नायकों के सहयोग से सिहासन अधिकार कर 1485 ई. में एक नई राजवंश सुलुव वंश की सत्ता स्थापित की।