कलिंग युद्ध के उपरान्त अशोक ने बौद्ध धर्म के प्रचार-प्रसार करने के लिए तन, मन, धन से कार्य किया।
अशोक ने महात्मा बुद्ध से संबंधित तीर्थ स्थानों लूम्बनी, कपिलवस्तु, गया, कुशीनगर तथा श्रावस्ती की यात्राएँ की और जिन सिद्धान्तों का प्रचार किया उनका पालन स्वयं भी किया।
अशोक ने बौद्ध धर्म के नियमों को शिलाओं, स्तम्भों, गुफाओं पर खुदवाया। उसने अनेक स्तूप बनवाये। उसने बौद्ध भिक्षुओं को आर्थिक सहायता दी।
बौद्ध धर्म की आंतरिक फुट को दूर करने के लिए पाटलिपुत्र में बौद्धों की तीसरी संगीति का आयोजन भी किया।
बौद्ध धर्म के प्रचार हेतु प्रचारकों को भारत के विभिन्न भागों के साथ-साथ विदेशों में भी भेजा।
लंका में अशोक अपने पुत्र महेन्द्र और पुत्री संघमित्रा को भेजा। इस प्रकार अशोक बौद्ध धर्म को विश्वधर्म बना दिया।