अशोक (Ashoka) ने अपनी प्रजा के नैतिक उत्थान के लिये कुछ सिद्धान्त बनाये; इन सिद्धान्तों को अशोक का धम्म कहा जाता है।
अशोक का धम्म सभी धर्मों का सार संक्षेप था। अशोक के अभिलेख संख्या दो और पांच के अनुसार-कम पाप, बहुत कल्याण, दया और दान ही धम्म है।
धम्म में सार्वभौमिकता, अहिंसा, सहिष्णुता आदि का समावेश था। धम्म महामात्य नामक अधिकारी को इसके प्रचार-प्रसार के लिए नियुक्त किया गया।
अशोक अपने धम्म को प्रचारित-प्रसारित करने के लिए कई उपाय किये, जो निम्न है—
- अशोक धम्म के उपदेशों को स्तम्भों पर खुदवाकर साम्राज्य के विभिन्न भागों में स्थापित करवाया।
- धम्म महामात्र नामक विशेष अधिकारी की नियुक्ति किया, जो पूरे साम्राज्य में घूम-घूमकर धम्म प्रचार करते थे।
- अशोक द्वारा अनेकों स्तूप बनवाये गये तथा बौद्ध भिक्षुओं को आर्थिक सहायता दी गई।
- अशोक धम्म प्रचार हेतु विदेशों में दूत मण्डल भेजा। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि अशोक विश्व का पहला शासक था, जिसने मानव कल्याण और मानव के नैतिक उत्थान के लिए इतना अधिक प्रयास किया। उनका धम्म सैद्धान्तिक से ज्यादा व्यवहारिक था और उसका उद्देश्य नागरिकों में नैतिकता का विकास करना था।