मुद्रा के आविष्कार के पूर्व वस्तु विनिमय प्रणाली का प्रचलन था। इस प्रणाली में लोग विनिमय में अपनी वस्तुओं का प्रत्यक्ष आदान-प्रदान करते थे।
लेकिन, वस्तुविनिमय के अंतर्गत कम-से-कम ऐसे दो व्यक्तियों में संपर्क होना आवश्यक है जिनके पास एक-दूसरे की आवश्यकता की पूर्ति की वस्तुएँ हैं।
इसे आवश्यकताओं का दोहरा संयोग कहा जाता है। परंतु, वास्तविक जीवन में इस प्रकार का संयोग होना अत्यंत कठिन है। मुद्रा के प्रयोग से यह कठिनाई दूर हो गई है।
आज सभी वस्तुओं और सेवाओं का विनिमय मुद्रा के माध्यम से होता है।