इस भौतिक युग में मनुष्य स्वार्थी बन गया है। दूसरों के सुख-दुःख से उसका कोई के लेना-देना नहीं है। वातावरण को शुद्ध रखनेवाला वृक्ष स्वयं असुरक्षित हो गया है।
मनुष्य को मित्र समझने वाला वह स्वयं असहाय बन गया है। वृक्ष से ही घर, नगर, देश सुरक्षित है, किन्तु दैनिक आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु हम वृक्ष को धआँधार काटते जा रहे हैं।
यदि ऐसी स्थिति रही तो वह दिन दूर नहीं है जब-जीव जगत् का अस्तित्व स्वयं मिट जाएगा ।