पहले पद में मीरा ने हरि 'कृष्ण' से कहा है कि जिस प्रकार आपने भरी सभा में द्रौपदी की साड़ी को बढ़ाकर उसका अपमान होने से बचाया था। भक्त प्रहलाद के प्राणों की रक्षा भगवान नरसिंह का रूप धारण करके की। उसी प्रकार आप मुझे भी अपने दर्शन देकर मेरी पीड़ा को हर लो।