मीराबाई की भाषा मूलतः बृजभाषा है, जो तत्कालीन काव्य की भाषा के रूप में प्रचलित थी । मूलतः राजस्थान की होने के कारण उनकी भाषा पर राजस्थानी भाषा का भी अच्छा प्रभाव है। मीरा की कविता में एक रहस्य है जो उनके लौकिक प्रेम को उनके अलौकिक प्रेम से जोड़ता है।
जब वे कृष्ण से अपने वियोग की बात करती हैं तो वे कहती हैं कि इस वियोग से वे अत्यंत दुखी हैं और कृष्ण से मिलन के लिए बेचैन हैं। दूसरे रूप में वे आत्मा और परमात्मा के मिलन की ओर संकेत करती दिखाई देती हैं, क्योंकि किसी भी जीव को संपूर्ण आनन्द परमात्मा से मिलन के बाद ही प्राप्त होता है।