कबीरदास जी की भाषा की सबसे बड़ी विशेषता अभिव्यक्ति की की निर्भीकता है। अपनी शिक्षा के बारे में बताते हुए उन्होने कहा है कि - 'मसि कागद छुयो नहीं, कलम गही नहीं हाथ' अर्थात उन्होने कभी भी कागज और कलम को हाथ तक नहीं लगाया। कबीर की भाषा को सधुक्कड़ी भाषा या खिचड़ी भाषा की संज्ञा भी दी गई है।
उनकी भाषा में एक से अधिक भाषाओं का प्रयोग मिलता है। उनकी भाषा में एक ऐसा सौंदर्य है जो अन्यत्र कहीं देखने को नहीं मिलता है। हृदय से निकली अभिव्यक्तियों के कारण उनकी भाषा सहज, सरल और मन पर सीधा प्रहार करने वाली है।