नालंदा के शिक्षाक्रम की तैयारी बड़ी व्यावहारिक बुद्धि से की गई थी। उस शिक्षाक्रम के द्वारा विद्यार्थी दैनिक जीवन में अधिक-से-अधिक सफलता प्राप्त करते थे। यहाँ मूल रूप से पाँच विषयों की शिक्षा अनिवार्य थी, वे विषय थे-
- अपनी रुचि के अनुसार छात्र दर्शन का अध्ययन करते थे।
- शब्दविद्या या व्याकरण, जिससे भाषा का सम्यक् ज्ञान होता था।
- चिकित्सा विद्या, जिसे सीखकर विद्यार्थी स्वयं स्वस्थ रहते थे तथा दूसरों को भी नीरोग रखते थे।
- हेतुविद्या या तर्कशास्त्र, जिससे विद्यार्थी अपनी बुद्धि की कसौटी पर प्रत्येक बात को परखा करते थे।
- शिल्पविद्या, जिसे सीखकर विद्यार्थियों में व्यावहारिक और आर्थिक जीवन की स्वतंत्रता आती थी। एक-न-एक शिल्प को सीखना प्रत्येक विद्यार्थी के लिए अनिवार्य था।