पढ़ने की आरंभिक शिक्षा को सार्थक बनाने में शिक्षक की भूमिका को स्पष्ट कीजिए। Padhne Ki Aarambhik Shiksha Ko Sarthak Banane Mein Shiksha ki Bhumika Ko Spasht Kijiye.
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पढ़ने की आरंभिक शिक्षा को सार्थक बनाने में शिक्षक की भूमिका को स्पष्ट कीजिए। Padhne Ki Aarambhik Shiksha Ko Sarthak Banane Mein Shiksha ki Bhumika Ko Spasht Kijiye.

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बच्चों की आरंभिक शिक्षा का काल ही उसके शिक्षा जीवन का महत्वपूर्ण काल होता है, इसलिए कहा जाता है, कि बच्चा तो कच्चे घड़े के समान है उसे जैसे चाहे मोड़ा जा सकता है। अतः शिक्षक बच्चों को पढ़ने हेतु नयी-नयी विधियाँ प्रविधियाँ एवं तकनीकें उपयोग कर सकता है। पढ़ने की आरंभिक शिक्षा को सार्थक बनाने में शिक्षक की भूमिका निम्नलिखित है—

  1. कक्षा में अनुशासन की नयी सोच- कुछ शिक्षक अनुशासन का अर्थ कक्षा में शांति का वातावरण समझते हैं।बच्चों को अनुशासित करने के लिए उन्हें कुछ पढ़ने की स्वतंत्रता दे, कुछ रचने, कुछ करने एवं स्वयं को अभिव्यक्त करने की आजादी दें। फ्रेंक स्मिथ के शब्दों में, "पढ़ने के प्रति उत्साह बनाए रखने के लिए गतिविधियों का होना आवश्यक है।”
  2. शिक्षक पूर्वाग्रहों से दूर रहे- शिक्षक को समाज के वर्गीय ढाँचे व जातियों, समुदायों तथा क्षेत्रीय आदि के पूर्वाग्रहों से दूर रहना चाहिए। बच्चों की आंचलिक बोली का सम्मान करते हुए प्रारंभ में शिक्षक को उतनी बातों और भावों को स्थानीय भाषा में ही समझना चाहिए। जिससे बच्चों को विद्यालय एवं शिक्षक अपने से लगें।
  3. शिक्षक का सकारात्मक दृष्टिकोण - शिक्षक के सकारात्मक दृष्टिकोण का बच्चों के दर्शन पर गहरा प्रभाव पड़ता है। शिक्षक यदि किसी बच्चे से यह आशा रखता है कि तुम इस कार्य को कर लोगे तो बच्चे का इसका सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। वह शिक्षक के विश्वास एवं आशा को कायम रखने का प्रयास करता है। इससे बच्चे बड़ों की आशाओं एवं उम्मीदों को आत्मसात कर लेते हैं।
  4. शिक्षक का स्नेहिल व्यवहार - शिक्षक का बच्चे के प्रति प्यार, विश्वास एवं आत्मीय व्यवहार ही बच्चे में पढ़ने का कौशल सही तरीके से विकसित कर सकता है। इससे बच्चों को अनुशासित करने में भी सहायता मिलती है।
  5. आकलन में सहजता - बच्चों का आकलन एवं अवलोकन सहजतापूर्वक होना चाहिए इसके लिए सिर्फ परीक्षा पर्याप्त नहीं है, वरन् बच्चों की सही आकलन करने के लिए शिक्षकों को बच्चों के साथ अलग- अलग कुछ समय बिताना होगा। उन्हें बच्चों को अलग-अलग समय देकर उनकी गतिविधियों व क्षमताओं पर ध्यान देना होगा।
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