शैक्षिक सम्प्रेषण से तात्पर्य शैक्षिक उद्देश्यों की प्राप्ति के लिये किये गये सम्प्रेषण से होता है।
इसमें शिक्षक सन्देश का स्रोत अथवा सन्देश देने वाला व्यक्ति तथा छात्र सन्देश ग्रहण करने वाले होते हैं।
जहाँ तक सन्देश का प्रश्न है - यह सन्देश कोर्स की विषय-वस्तु से या सहगामी क्रियाओं से सम्बन्धित होता है। शिक्षक, छात्रों को विषय-वस्तु या प्रकरण स्पष्ट करने के लिये शैक्षिक सम्प्रेषण में शाब्दिक तथा अशाब्दिक दोनों ही प्रकार के सम्प्रेषणों का प्रयोग प्रभावशाली ढंग से करने का प्रयास करता है जिससे उसका शिक्षण सफल एवं प्रभावशाली बन जाता है।
प्रभावशाली शिक्षण के लिये प्रभावशाली शैक्षिक सम्प्रेषण का होना अनिवार्य है। डॉ. गुप्ता के शब्दों में, “शैक्षिक सम्प्रेषण के अन्तर्गत छात्रों को विभिन्न प्रकार के शैक्षिक नियमों, सिद्धान्तों, नीतियों, शिक्षण की विधियों तथा पद्धतियों तथा निर्देशन एवं परामर्श आदि के विषय में शिक्षा प्रदान की जाती है।
इसके लिये शिक्षक पाठ्य-वस्तु के विश्लेषण के साथ-साथ सम्प्रेषण प्रक्रिया का भी प्रयोग करता है। सम्प्रेषण तथा संग्राहक के मध्य सम्प्रेषण प्रक्रिया के कारण निम्नांकित सम्बन्ध होते हैं-
(1) उन्मुखीकरण,
(2) तद्नुभूति का विकास,
(3) प्रतिपुष्टि,
(4) भौतिक निर्भरता,
(5) विश्वसनीयता,
(6) अन्तःक्रिया ।” खन्ना, लाम्बा, सक्सैना व मूर्ति (1993) के अनुसार- “शिक्षण-अधिगम प्रक्रिया में शिक्षक तथा छात्रों को एक साथ मिलकर कर कार्य करने के क्षेत्र में सम्प्रेषण एक प्रमुख साधन के रूप में कार्य करता है। सम्प्रेषण ही शिक्षक तथा छात्रों को एक साथ बाँधे रखने में, उन्हें प्रभावित करने में अहम् भूमिका निभाता है। शिक्षक सैद्धान्तिक रूप से शिक्षण हेतु अपनी पाठ योजनायें बनाता है।