सम्प्रेषण शिक्षा की रीढ़ की हड्डी है। बिना सम्प्रेषण के शिक्षा और शिक्षण दोनों की ही कल्पना नहीं की जा सकती। सम्प्रेषण में व्यक्ति परस्पर सामान्य अवबोध के माध्यम से आदान-प्रदान करने का प्रयास करते हैं।
शिक्षा व शिक्षण बिना सूचनाओं एवं विचारों के आदान-प्रदान के संभव ही नहीं है ।
शिक्षक होने के नाते आप अपने प्रधानाचार्य से या छात्रों से कुछ कहते हैं या छात्र आपको कुछ बताते हैं प्रत्युत्तर देते हैं या प्रधानाचार्य द्वारा आपको आदेश दिया जाता है, प्रशंसा या आलोचना करते हैं।
इसका तात्पर्य है कि सम्प्रेषण की प्रक्रिया चल रही है। शिक्षा में उचित सम्प्रेषण • का प्रमुख महत्व है कि इसमें व्यक्ति अपने ज्ञान, हाव-भाव, मुख - मुद्रा तथा विचारों आदि का परस्पर आदान-प्रदान करते हैं तथा इस प्रकार से प्राप्त विचारों अथवा संदेशों को समान एवं सही अर्थों में समझने व प्रेषण करने में उपयोग करते हैं ।
सम्प्रेषण, प्रेषण करने की, विचार-विनिमय करने की, अपनी बात दूसरों तक पहुँचाने की और दूसरों की बाते सुनने की, विचारों, संवेदनाओं, अभिवृत्तियों एवं सूचनाओं तथा ज्ञान के विनिमय करने की एक प्रक्रिया है ।