यह उक्ति बालकृष्ण भट्ट के निबन्ध बात चीत से गृहीत है। इसमें एक सर्वस्वीकृत और अनुभव सिद्ध तथ्य का कथन किया गया है। जबतक आदमी चुप रहता है तबतक पता नहीं लगता कि उसका स्वभाव कैसा है, उसकी रुचि क्या है और उसका दूसरों के साथ व्यवहार कैसा है। लेकिन जब वह बोलने लगता है तो जाने अनजाने उसका भीतरी और असली रूप व्यक्त हो जाता है। इससे लोगों को पता लग जाता है कि व्यक्ति का स्वभाव कैसा है। स्पष्टत: यह उक्ति बतलानी है कि भाषा व्यक्ति के समग्र व्यक्तित्व की अभिव्यक्ति है।