इस योजना के समय दक्षिण पूर्वी एशियाई देशों में वित्तीय संकट चल रहा था। जिसका प्रभाव भारतीय अर्थव्यवस्था पर भी पड़ा।
हालांकि इस समय तक अर्थव्यवस्था 1990 के वित्तीय संकट से बाहर निकल चुकी थी।
इस योजना का मुख्य उद्देश्य सामाजिक न्याय और समानता के साथ आर्थिक समृद्धि था।
इसके लिए जीवन स्तर रोजगार सृजन आत्मनिर्भरता और क्षेत्रीय संतुलन जैसे क्षेत्रों पर विशेष बल दिया गया।