आधुनिक बांग्ला साहित्य के महान् साहित्यकार बंकिम चन्द्र चट्टोपाध्याय (1838-1894) के उपन्यास अपने देशवासियों में देशभक्तिपूर्ण भावनाओं को जाग्रत करने में लगे हुये थे।
उन्होंने देशवासियों को अपने देश की मौजूदा दयनीय स्थिति के कारणों पर विचार करने के लिए बाध्य किया। अपने प्रसिद्ध गीत वन्दे मातरम् के साथ आनंदमठ देशभक्तों के लिए प्रेरणास्रोत बन गया।
आनंदमठ, आजादी के उन दीवाने देशभक्त और क्रांतिकारी व्यक्तियों की गाथा है, जो वंदेमातरम् का जयघोष करते हुए देश की स्वतंत्रता के लिए अपना सब कुछ बलिदान कर दिये।
आर्थिक राष्ट्रवाद के प्रवर्तक के रूप में विख्यात रमेश चन्द्र दत्त (1848-1909) को अपनी रचना की प्रेरणा उन्हें 'साहित्यिक देशभक्ति' से मिली थी।
रमेश चन्द्र दत्त, ऐस हिन्दू थे जिन्हें अपनी परम्परा एवं संस्कृति से लगाव था। उन्होंने अपने उपन्यास समाज में प्राचीन भारतीय अतीत को आदर्श रूप में प्रस्तुत किया।
उन्होंने इस उपन्यास में ऐसे भारतीय राष्ट्रवाद का चित्रण किया है जो हिन्दुओं पर केन्द्रित था। लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि रमेश चन्द्र सम्प्रदायवादी थे।
यहाँ हिन्दू आदर्श को प्रस्तुत करने के पीछे इस बात को प्रकाश में लाना था कि उस समय भारतीय राष्ट्रवाद में ऐसी संभावनाएँ निहित थीं जो सम्प्रदायिक प्रवृत्तियों को जन्म दे सकती थीं। अतः रमेश चन्द्र को उनके समय की प्रवृत्तियों को अभिव्यक्ति देने वाले प्रतिनिधि के रूप में देखा और समझा जाना चाहिए।
बांग्ला उपन्यासकार ताराशंकर बंद्योपाध्याय (1898–1971) की 1947 से पूर्व की रचनाओं पर दृष्टि डालना काफी उपयोगी होगा। विशेषकर गणदेवता एवं पंचग्राम उपन्यास में उन्होंने शोषण एवं औद्योगिकीकरण के कारण ग्रामीण समाज के विघटन को दिखाया है।
इस शोषण एवं उत्पीड़न के विरुद्ध निर्धन ग्रामीणों के संघर्ष का भी वर्णन किया है, जो अन्ततः असफल होता है। यह असफलता इसलिए नहीं कि प्रभावी वर्ग शक्तिशाली था। बल्कि इसलिए कि औद्योगिकीकरण की वास्तविकता के समक्ष ग्रामीण सामाजिक जीवन एवं अर्थव्यवस्था थी कि नहीं रह सकती।
अतः उपरोक्त वाक्यों से स्पष्ट होता है कि बांग्ला साहित्य ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई ।