आदिकाल से ही मानव अपनी उदरपूर्ति के लिए कुछ न कुछ करता रहा है। अपना भोजन जुटाने का काम मनुष्य ने विभिन्न तरीकों से करता रहा है। इनमें पहला था - संग्रहण (Gathering) ।
मनुष्य की इस संग्रहण की क्रिया में पेड़-पौधों से मिलने वाला जल-फूल, गुठलियाँ इत्यादि सम्मिलित हैं। हालांकि इसका कोई प्रमाण हमें उपलब्ध नहीं हो सका है क्योंकि पेड़-पौधों से प्राप्त भोज्य पदार्थों का जीवाश्म अभी तक अप्राप्य ही है।
अतएव पौधों से भोजन एकत्रीकरण के बारे में जानकारी प्राप्त करने का तरीका दुर्घटना अथवा संयोगवश जले हुए पौधों से प्राप्त अवशेषों का अध्ययन ही है।
हाल फिलहाल के सालों में, 'शिकार' शब्द विद्वानों के बहस का विषय बना हुआ है। अब अधिकांशतः यह मत दिया जाने लगा है कि आदिकालीन होमिनिड अपमार्जन या रसदखोरी (Scavanging or Forgaining) के द्वारा उन जानवरों की लाशों से मांस-मज्जा खुरच कर निकालने लगे जो जानवर अपने आप मर जाते हैं अथवा किन्हीं दूसरे हिंसक जानवरों द्वारा मार दिए जाते थे।
इस बात की भी संभावना अभिव्यक्त की जा सकती है कि पूर्व होमिनिड समूह के मानव चूहे, छुछूंदर जैसे कृतकों, पक्षियों, सरीसृपों और कीड़ों-मकोड़ों का भी उपभोग करते थे। शिकार संभवतः बाद में प्रारम्भ हुआ यही 5 लाख वर्ष पूर्व ।
दक्षिणी इंगलैण्ड के बॉक्सग्रोव एवं जर्मनी में शोनिंजन में मानवों द्वारा जानवरों का शिकार क्रमश: पाँच एवं चार लाख वर्ष प्राचीन के भोजन प्राप्ति का एक तरीका था। कहीं खोज स्थलों से मछली की हड्डियां मिलने से जानकारी प्राप्त हुई है।
चेक गणराज्य में दोलनी वेस्तोनाइस से इस बात का साक्ष्य उपलब्ध हुआ है कि लगभग 35,000 वर्ष पहले मानवों के द्वारा पतझड़ तथा बसंत के मौसम में रेन्डियर और घोड़ों का शिकार किया जाता था। खाद्य पदार्थों को एकत्रित करने में स्त्री पुरुष की सम्मिलित भूमिका के बारे में कोई ठोस जानकारी प्राप्त नहीं है।