इस्लाम धर्म के पहले अरब साम्राज्य कई कबीलों (Tribes) में बँटा हुआ था। जीवन तितर-बितर हो चुका था। उनमें राजनीतिक एवं धार्मिक एकता एक तरह से शून्य ही था। रेगिस्तान होने के चलते उनके जीवन में अस्थिरता ही अस्थिरता थी।
रोजी-रोटी की खोज में वे एक स्थान से दूसरे स्थानों पर भ्रमण करते रहते थे। उनकी एक मात्र सम्पत्ति पशु ही थी। वे घुमक्कर (खानाबदोश ) थे तथा बद्दू के नाम से जाने जाते थे।
हरेक कबीला का अपना एक शासक होता था जो हमेशा आपस में लड़ते-झगड़ते थे। .
1. सामाजिक स्थिति : अरबों का सामाजिक जीवन व्यवस्थित नहीं था। उनमें नैतिक चेतना की बहुत कमी थी। समाज में नारियों का स्थान उच्च नहीं था। समाज में बहु विवाह बेमेल विवाह इत्यादि का ही बोलबाला था। अरब में नारियों के बचपन का जीवन पिता के संरक्षण में, विवाहोपरांत पति की दासी के रूप में और बुढ़ापे में पुत्र के संरक्षण में बीतता था। अरब का समाज कुल मिलाकर पितृसत्तात्मक ही था। समाज में विभिन्न प्रकार की बुराइयाँ व्याप्त थीं। सूदखोरी, जुआ, शराबखोरी, बहुविवाह, बालिकाओं की हत्या इत्यादि से समाज पूर्णरूपेण दुष्प्रभावित हो चुका था।
2. धार्मिक जीवन की स्थिति : अरबवासी बहुदेववादी तथा पत्थर (पाषाण) के पुजारी थे। मक्का के काबा मस्जिद में 360 मूर्त्तियाँ थीं जिसमें प्रत्येक दिन एक मूर्ति की पूजा की जाती थी। मक्का में एक काला पत्थर था जिसे 'संगे- असवद' कहा जाता था। प्रत्येक व्यक्ति जो हज करने जाते थे, आज भी उसे श्रद्धा के साथ चूमते हैं। बल्ख के नौ विहार मन्दिर के मूर्त्तियों को रेशम का वस्त्र पहनाया जाता था। मूर्ति को बूत कहा जाता था तथा नौ विहार से बौद्ध धर्म का बोध होता है। भूत-प्रेत, जादू-टोने और बलि प्रथा का भी प्रचलन था। वे अल्लाह को सर्वश्रेष्ठ मानते थे और उनके नाम पर समझौता एवं संधि की जाती थी। प्राकृतिक शक्तियों तथा पूर्वजों की भी पूजा होती थी। मक्का में काबे की दीवार में लगे एक काले पत्थर के टुकड़े को वे आकाश में गिरा हुआ मानते थे। अंधविश्वास तथा ईर्ष्या - द्वेष से वे ग्रसित रहते थे।