अधिकतर इतिहासकार (Historian) इस विचार से सहमत हैं कि माओत्से तुंग और चीन के कम्युनिस्ट पार्टी चीन को मुक्ति दिलाने और इसकी मौजूदा कामयाबी की बुनियाद डालने में सफल रहे थे।
नवम्बर 1949 ई० को जब माओ की अध्यक्षता में जनवादी चीन गणराज्य की स्थापना हुई। एक अन्य घटना, जिसे माओ ने इस विचार से शुरू किया था कि उसकी स्थिति मजबूत हो जाए वह थी सांस्कृतिक क्रान्ति। जिसका प्रारम्भ माओ ने 1966 ई० में किया।
इस क्रान्ति के बागडोर उसने अपने सबसे प्रबल समर्थक लाल रक्षक (Red Guard) को सौंप दी जिसमें अधिकतर विद्यार्थी थे। कुछ समय तो इन समर्थकों ने अच्छा कार्य किया परन्तु उनके जोश और बढ़ गए और उन्होंने अध्यापकों, बुद्धिजीवियों, स्थानीय पार्टी के पदाधिकारियों के साथ दुर्व्यवहार करना शुरू कर दिया।
इस आन्दोलन के हाथ से निकल जाने से एक अनुमान के अनुसार 4 लाख से 10 लाख लोगों को अपने प्राण गँवाने पड़े। ऐसे में देश गृह युद्ध के कगार पर खड़ा हो गया। लोगों ने सांस्कृतिक क्रान्ति के विरुद्ध हड़तालें करनी शुरू कर दी और विश्वभर में चीन की भर्त्सना होने लगी। निःसन्देह इस घटनाचक्र से भी माओ की स्थिति में गिरावट आई।
अपनी स्थिति सुधारने के लिए माओ को पैंतरा बदलना पड़ा। अब उसने जन विमुक्ति से (People's Liberation Army) को लाल रक्षक अतिवादियों को कुचलने का हुक्म दे दिया। 3 लाख लोग लाल रक्षकों के विरुद्ध हो गए और उनमें आपसी मार पिटाई शुरू हो गई ऐसा लगा मानो सारा देश एक हिंसा स्थल बन गया हो। इस प्रकार जब 1976 ई० में माओ की मृत्यु हुई तो लोगों ने आराम की साँस ली।
इस प्रकार सांस्कृतिक क्रान्ति के घटनाचक्र द्वारा निःसन्देह माओ की स्थिति काफी कमजोर हो गई थी।