1206 में दिल्ली सल्तनत की स्थापना के बाद बौद्धिक और आध्यात्मिक स्तर पर हिंदू और मुसलमानों का संपर्क बना इसके पूर्व जहाँ भारत के लोग तुर्क आफगानों को एक लुटेरा और मूर्ति भंजक समझाते थे ।अब शासक के रूप में स्वीकार ने लगे। इस भावना को फैलने में उन भारतीयों की याददाश्त भी थी जिन्हें मालूम था कि कभी अफगानिस्तान पर भारत का शासन था ।अतः यहाँ लोग आफगानो को गैर नहीं मानते थे। खासकर बिहार में क्योंकि अशोक विहार का ही था ।अलबरूनी जो महमूद गजनी के साथ भारत आया था। यहाँ रहकर संस्कृत की शिक्षा ली और हिंदू धर्म और विज्ञान का अध्ययन किया। उसने यहाँ की सामाजिक जीवन को भी निकट से देखा खूब सोच समझकर अपनी अपनी प्रसिद्ध पुस्तक किताब उल हिंद लिखी। दूसरील और अनेक सूफी संत और धर्म प्रचारक भारत के विभिन्न नगरों में बसने लगे ।इससे इन दोनों धर्मों को मानने वाले के बीच आदान-प्रदान और समन्वय का वातावरण बना। मुस्लिम शासकों खास करो मुगलों द्वारा स्थापित राजनीतिक एकता का सबसे बड़ा प्रभाव हिंदू भक्त संतों एवं सूफी संतों के मेल मिलाप बढ़ाने पर दोनों ने इस भावना का प्रचार किया, कि भगवान एक है ईश्वर और अल्लाह में कोई फर्क नहीं है सभी धर्म के लोग की चरम अभिलाषा खुदा तक पहुँचने की होती है ।तुम खुद में खुदा को देखो आगे चलकर एकक पहनावे और खानपान को दूसरे ने अपनाया राजकाज में हिस्सा लेने वाले हिंदू भी फारसी पढ़ने लगे और पैजामा और अचकन का व्यवहार करने लगे। इसी प्रकार भारत में मिली-जुली संस्कृति का विकास हुआ।