प्रस्तुत पंक्ति हमारे पाठ्य पुस्तक दिगंत भाग - 2 के पाठ 'अर्धनारीश्वर' पाठ से लिया गया है। प्रस्तुत पंक्ति में दिनकर का मन्तव्य है कि नर नारी पूर्ण रूप से समान हैं एवं उनमें से एक के गुण दूसरे के दोष नहीं हो सकते । दिनकर जी के अनुसार नर और नारी एक ही द्रव्य से निर्मित दो मूर्तियाँ हैं। प्रत्येक नर के भीतर एक नारी और प्रत्येक नारी के भीतर एक नर छिपा है। नारी ने अपने भीतर नर को दबाया है और पुरुष ने अपने भीतर की नारी को उपेक्षित किया है, इसीलिए आज संसार में इतना संघर्ष है।