सतत् पोषणीय ऊर्जा के स्रोत को नवीनीकृत साधन कहते हैं। इन्हें अपरम्परागत स्रोत भी कहा जाता है। सौर, पवन, जल, भूतापीय ऊर्जा तथा जैवभार (बायोमास) असमाप्य, समान रूप से वितरित तथा पर्यावरण अनुकूल हैं और इन्हें नवीनीकृत करके बार-बार उपयोग किया जा सकता है।
इसके विपरीत कोयला, पेट्रोलियम, प्राकृतिक गैस तथा नाभिकीय ऊर्जा अनवीनीकृत तथा परम्परागत स्रोत हैं, जो समाप्य संसाधन हैं। एक बार प्रयोग करने के बाद ये समाप्त हो जाते हैं।