उत्परिवर्तन (Utparivartan) किसी भी जीव में अचानक होनेवाले विशाल असतत् भिन्नता है जो वंशगत होता है। उत्परिवर्तन कायिक कोशिकाओं तथा जनन कोशिकाओं दोनों में होता है। अंगुणित पीढ़ी की कोशिकाएँ उत्परिवर्तन के लिए उपयुक्त होती है।
आकार के आधार पर उत्परिवर्तन दो प्रकार के होते हैं, जो इस प्रकार है—
1. वृहत उत्परिवर्तन : वे सभी विभिन्नताएँ जो फीनोटाइप (phenotype) में दिखाई देती हैं, वृहत उत्परिवर्तन कहलाती हैं। इसके अंतर्गत क्रोमोसोम की संख्या एवं संरचना में होनेवाले परिवर्तन आते हैं।
2. सूक्ष्म उत्परिवर्तन : ऐसी विभिन्नताएँ जो जीनोटाइप में होती हैं सूक्ष्म उत्परिवर्तन कहलाती हैं । इसके अंतर्गत DNA या आण्विक स्तर पर हुए परिवर्तनों को सम्मिलित किया जाता है।
दिशा के आधार पर उत्परिवर्तन निम्नलिखित दो प्रकार के हो सकते हैं—
1. अग्र उत्परिवर्तन : जब उत्परिवर्तन वन्य (wild) गुणों से आगे की ओर होता है तो उसे अग्र उत्परिवर्तन कहते हैं, जैसे मटर के रंगीन पुष्पवाले वन्य पौधे से उत्परिवर्तन द्वारा सफेद पुष्पवाले पौधे का बनना।
2. प्रतिलोम उत्परिवर्तनन : जब उत्परिवर्ती (mutant) जीवों से वन्य गुणों की ओर उत्परिवर्तन हो तो इसे प्रतिलोम उत्परिवर्तन कहते हैं, जैसे मटर के सफेद फूलवाले पौधे से रंगीन फूलवाले पौधे का उत्परिवर्तन।
गुणसूत्रीय उत्परिवर्तन या क्रोमोसोमल म्यूटेशन : क्रोमोसोम की संख्या एवं संरचना में होनेवाले परिवर्तनों को गुणसूत्रीय उत्परिवर्तन या क्रोमोसोमल म्यूटेशन कहते हैं।
जीन उत्परिवर्तन : सूक्ष्म स्तर पर जीन में होनेवाले किसी प्रकार के परिवर्तन को जीन उत्परिवर्तन कहते हैं।
उत्परिवर्तन के कुछ महत्त्व निम्नलिखित हैं—
- पादप-विकास में उत्परिवर्तन की महत्त्वपूर्ण भूमिका है। पौधों की नई-नई किस्में उत्परिवर्तन द्वारा विकास की गई।
- उत्परिवर्तन का कार्बनिक विकास में योगदान है।