मुख्य रूप से पर्यावरण के दो प्रकार हैं—
- प्राकृतिक पर्यावरण (Natural Environment)
- सामाजिक पर्यावरण (Social Environment)
प्राकृतिक पर्यावरण (Natural Environment) — प्राकृतिक पर्यावरण प्रकृति से सम्बन्धित है जिसमें वायु, जल, भूमि, वन, खनिज पदार्थ, पशु-पक्षी आदि सम्मिलित हैं अर्थात् जैवकीय और अजैवकीय पदार्थ आते हैं। पर्यावरण के सभी अंग सन्तुलन बनाये रखते हैं, परन्तु मानव ने अपनी अज्ञानता और असावधानी से वातावरण को प्रदूषित कर लिया है।
सामाजिक पर्यावरण (Social Environment) — सामाजिक पर्यावरण सामाजिक सम्बन्धों की क्रिया एवं प्रतिक्रिया से प्रकट होता है। मानव जीवन के सभी पहलू सामाजिक पर्यावरण की परिधि में सम्मिलित हैं, जैसे राजनीतिक, आर्थिक, धार्मिक, आध्यात्मिक, शारीरिक एवं मानसिक आदि । मनुष्य जन्म से सामाजिक प्राणी है। वह समाजविहीन अवस्था में जीवित नहीं रह सकता। उसका विकास समाज में ही सम्भव है।
अतः मानव के सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक, धार्मिक और मानसिक व आध्यात्मिक सम्बन्ध सामाजिक पर्यावरण में ही आते हैं, जैसे जातिगत सम्बन्ध, समुदायगत सम्बन्ध, धर्मगत सम्बन्ध, वर्गगत सम्बन्ध, पारिवारिक सम्बन्ध, विद्यालयगत सम्बन्ध युगलीकरण, राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्ध आदि सामाजिक पर्यावरण के ही उदाहरण हैं।
आज मानव मंगल ग्रह की ओर और मानवता जंगल की ओर जा रही है। समाज में नैतिक मूल्यों का पतन हो गया है। समाज में असुरक्षा, अशान्ति, अव्यवस्था व्याप्त है क्योंकि हम मानसिक स्तर से प्रदूषित हो गए हैं। यदि मानवता को भावी संकट से उबारना है तो पर्यावरण को शिक्षा प्रक्रिया का अनिवार्य अंग बनाना होगा। औपचारिक व अनौपचारिक विधियों से पर्यावरण की शिक्षा वर्तमान विद्यालयों के भावी नागरिकों को दी जाये तो इस भावी संकट से मानवता को मुक्ति मिल सकती है।