दुग्धशाला व्यवस्था (Dairy Farm Management )- डेयरी दुग्ध व दुग्ध उत्पादों से सम्बन्धित होती है। दुग्धशाला वाले जन्तुओं में मुख्यतः गाय व भैंस आती हैं जो दूध प्राप्त करने के लिए पाली जाती हैं। दुग्धशाला ऐसा स्थान है जो दूध उत्पादन के लिए दुधारू जन्तुओं को पालने व जनन कराने के लिए होता है।
दुग्ध उद्योग में दुग्धशाला की व्यवस्था दूध वाले जन्तुओं को रखकर, दूध को निकाल करके व विभिन्न दुग्ध उत्पादों को बनाकर की जाती है।
दुग्धशाला तकनीक में दुग्धशाला जन्तुओं को पालने, व्यवस्थित करने व जनन कराने के लिए, दूध के संचय व बढ़ोत्तरी के लिए तथा विभिन्न दूध के उत्पादों को बनाने के लिए वैज्ञानिक यंत्र व विधियों का प्रयोग किया जाता है।
दूध के उत्पादन का बढ़ना राष्ट्रीय दुग्ध अनुसंधान संस्था (NDRIs) द्वारा चलाये गये ऑपरेशन फ्लड व श्वेत क्रान्ति, राष्ट्रीय दुग्ध विकास बोर्ड (NDDB) व राष्ट्रीय दुग्ध संगठन (NDC) के कारण हुआ ।
दूध उत्पादन बढ़ाने के लिए पशु जनन प्रक्रिया अपनाई जाती है । इसमें निम्नांकित चरण सम्मिलित हैं।
जाति का चयन (Selection of Breed)- दूध की प्राप्ति मुख्यतः जाति के चयन पर आधारित होती है। यह उच्च उत्पादन वाली, रोग से प्रतिरोधी व क्षेत्र की जलवायु दशाओं से अनुकूलित होती है।
चौपायों के रहने का स्थान ( Cattle Shed)- यह विस्तृत फैला हुआ, छतदार होना चाहिए लेकिन बालू- सीमेन्ट युक्त फर्श के साथ वायुदार होना चाहिए जिससे मूत्र बह सके व गोबर को निकाला जा सके। चौपाया को खिलाने के लिए नाँद होती है। पीने वाले जल की उपलब्धता सदा बनी रहनी चाहिए। भैंसों व उच्च उत्पादन देने वाली गायों के लिए ज्यादा भोजन की. आवश्यकता पड़ती है।
ग्रुमिंग (Grooming)- चौपाया को नियमित रूप से दाँत की सफाई, मालिश व साफ रखना चाहिए । नियमित रूप से ग्रुमिंग चौपाया को स्वस्थ रखती है।
स्वास्थ्य आरोग्यकर ( Sanitation)- पशुओं के रहने के स्थल में दृढ़ता से स्वास्थ्य विधियों की देख-भाल की आवश्यकता होती है ।
पशुओं व उसकी देख-रेख करने वालों की स्वस्थता मुख्य रूप से दूध दुहने, दूध व दूध के उत्पादों के भण्डारण व संवहन के दौरान महत्त्वपूर्ण होती है।
यंत्रीकरण ने स्वस्थता को बनाये रखने में सुधार किया है। वास्तव में, नियमित रूप से रिकार्ड को बनाये रखते हुए मशीनों की नियमित जाँच आवश्यक होती है।
स्वास्थ्य सुरक्षा (Health Care)– पशुओं वाले डॉक्टर को समय-समय पर पशुओं के रहने के स्थान की जाँच करनी चाहिए।
बीमार व दुर्बल जन्तुओं को पृथक् करके उनकी देख-भाल करनी चाहिए। टीकाकरण व उचित चिकित्सीय उपचार संदेशात्मक कर देना चाहिए।