मानव के लिए परजीवी जन्तु निम्न कारणों से महत्वपूर्ण हैं
(क) सामान्य शरीर क्रिया व विकास- परजीवी जंतुओं का निर्माण विशेष रूप से इस प्रकार किया जाता है जिनमें जीनों के नियंत्रण व इनके शरीर के विकास व सामान्य कार्यों पर पड़ने वाले प्रभावों का अध्ययन किया जाता है; उदाहरणार्थ-विकास में भागीदार जटिल कारकों, जैसे- इंसुलिन की तरह विकास कारक का अध्ययन।
दूसरी जाति (स्पीशीज) के जींस को प्रवेश कराने के उपरांत उपर्युक्त कारकों के निर्माण में होनेवाले परिवर्तनों से होने वाले जैविक प्रभाव का अध्ययन तथा कारकों की शरीर में जैविक भूमिका के बारे में सूचना मिलती है।
(ख) रोगों का अध्ययन - अनेकों परजीवी जन्तु इस प्रकार निर्मित किए जाते हैं जिनसे रोग के विकास में जीन की भूमिका क्या होती है ? यह विशिष्ट रूप से निर्मित है जो मानव रोगों के लिए नमूने के रूप में प्रयोग किए जाते हैं ताकि रोगों के नए उपचारों का अध्ययन हो सके।
वर्तमान समय में मानव रोगों, जैसे-कैंसर, पुटीय रेशामयता (सिस्टीक फाइब्रोसिस), रूमेटावाएड संधि शोथ व एल्जिमर हेतु परजीवी नमूने उपलब्ध हैं।
(ग) जैविक उत्पाद - कुछ मानव रोगों के उपचार के लिए औषधि की आवश्यकता होती है जो जैविक उत्पाद से बनी होती है। ऐसे उत्पादों को बनाना अक्सर बहुत महँगा होता है। परजीवी जन्तु जो उपयोगी जैविक उत्पाद का निर्माण करते हैं उनमें डीएनए के भाग ( जीनों) को प्रवेश कराते हैं जो विशेष उत्पाद के निर्माण में भाग लेते हैं।
उदाहरण- मानव प्रोटीन (अल्फा-1 एटीट्रिप्सिन) का उपयोग इफासीमा के निदान में होता है। ठीक उसी तरह का प्रयास फिन्मइल कीटोनूरिया (पीकेयू) व पुटीय रेशामयता के निदान हेतु किया गया है। वर्ष 1977 में सर्वप्रथम परजीवी गाय 'रोजी' मानव प्रोटीन सम्पन्न दुग्ध (2.4 ग्राम प्रति लीटर) विकसित किया गया। इस दूध में मानव अल्फा-लेक्टएल्बुमिन मिलता है जो मानव शिशु हेतु अत्यधिक संतुलित पोषक तत्व है जो साधारण गाय के दूध में नहीं मिलता है।
(घ) टीका सुरक्षा- टीकों का मानव पर प्रयोग करने से पहले टीके की सुरक्षा जाँच के लिए परजीवी चूहों को विकसित किया गया है। पोलियो टीका की सुरक्षा जाँच के लिए परजीवी चूहों का उपयोग किया जा चुका है। यदि उपर्युक्त प्रयोग सफल व विश्वसनीय पाए गए तो टीका सुरक्षा जाँच के लिए बंदर के स्थान पर परजीवी चूहों का प्रयोग किया जा सकेगा। '
(ङ) रासायनिक सुरक्षा परीक्षण- यह आविषालुता सुरक्षा परीक्षण कहलाता है । यह वही विधि है जो औषधि आविषालुता परीक्षण हेतु प्रयोग में लायी जाती है | परजीवी जन्तुओं में मिलने वाले कुछ जीन इसे आविषालु पदार्थों के प्रति अति संवेदनशील बनाते हैं जबकि अपरजीवी जन्तुओं में ऐसा नहीं है। परजीवी जन्तुओं को आविषालु पदार्थों के संपर्क में लाने के बाद पड़ने वाले प्रभावों का अध्ययन किया जाता है। उपर्युक्त जन्तुओं में आविषालुता परीक्षण करने से कम समय में परिणाम प्राप्त हो जाता है।