संरक्षण से आप क्या समझते हैं? जैविक स्रोतों के संरक्षण के तरीकों का वर्णन करें।
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संरक्षण से आप क्या समझते हैं? जैविक स्रोतों के संरक्षण के तरीकों का वर्णन करें। Or Sanrakshan Se Aap Kya Samajhte Hain? Jaivik Stroton Ke Sanrakshan Ke Tarikon Ka Varnan Karen.

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संरक्षण में जैव विविधता का प्रबन्धन, परिरक्षण एवं पुनः पूर्व स्थिति को प्राप्त किया जाना शामिल है। जैव स्रोतों का संरक्षण आवश्यक क्योंकि यह चेतावग्रस्त हो गयी है क्योंकि सम्बन्धित जातियों का अति दोहन, जलवायु परिवर्तन, आवासीय खण्डीभवन व प्रदूषण के कारण जीवन जोखिम में पड़ गया है।

कम स्थान में बढ़ती हुई मानव की आवश्यकतानुसार जैव विविधता एवं इसके स्रोतों को संरक्षित किये जाने हेतु दो प्रकार की युक्तियाँ हैं – स्व - स्थाने (उसी स्थान पर उपलब्ध) एवं दूर स्थाने (अन्य स्थान पर उपलब्ध )।

(a) स्व-स्थाने संरक्षण युक्तियाँ (In Situ Conservation Strategies) - इसके अन्तर्गत सुरक्षा, परिरक्षण एवं चेतावग्रस्त जातियों के पुनः स्थापन एवं प्राकृतिक आवास की परिस्थितियों में पारितन्त्रों की देख-रेख की जाती है।

इनमें बाह्य प्रजातियों के खतरे के प्रति, शिकारियों एवं बरतने का कार्य भी किया जाता है ये दो प्रकार की होती हैं- तप्त स्थल व सुरक्षित क्षेत्र।

1. तप्त स्थल (Hot Spots) - ये उच्च विशिष्ट क्षेत्रों व जाति समृद्धता के बहुत उच्च स्तर वाले क्षेत्र होते हैं। वैश्विक रूप से कुल 34 तप्त स्थल पहचाने जा चुके हैं।

इनमें जातियों की संख्या बहुत उच्च होती है। इसमें प्रयोग से बचना ही श्रेष्ठकर युक्ति है।

2. सुरक्षित क्षेत्र (Protected Areas)— ये वे जैव भू-भौगोलिक क्षेत्र हैं जो भू-भाग या समुद्री क्षेत्र द्वारा निर्दिष्ट किये जाते हैं जहाँ जैव विविधता प्राकृतिक एवं सहयोगी सांस्कृतिक सम्पदाओं की देख-रेख एवं सुरक्षा की जाती. है। 

इनके दोहन एवं नष्ट किये जाने हेतु कानूनी एवं अन्य प्रभावी तरीके अपनाए जाते हैं । तीन प्रकार के सुरक्षित क्षेत्र पाये जाते हैं। जीवमण्डल को राष्ट्रीय पार्क भी कहा जाता है।

(i) राष्ट्रीय उद्यान (National Parks)— ये क्षेत्र वन्य जीवों के लिए आरक्षित होते हैं जहाँ इन्हें सभी आवश्यक प्राकृतिक सम्पदाएँ एवं उचित आवास प्राप्त होता है।

इनमें वृक्षारोपण, खेती करना, चारण एवं वृक्षों के काटे जाने एवं आवासीय क्षेत्र में परिवर्तन किये जाने की अनुमति नहीं होती है । निजी क्षेत्र में ये नहीं दिये जाते हैं।

(ii) प्राणी विहार ( Sanctuaries) — ये वे भूमि के क्षेत्र होते हैं जिनमें झील भी हो सकती है। इनमें प्राणियों को आवासीय विक्षुब्धन एवं सभी प्रकार के दोहन या शोषण से मुक्त रखा जाता है। इनमें निजी क्षेत्रों को भी अनुमति दी जाती है।

लघु वन्य उत्पादों के संग्रह, लकड़ी एवं काष्ठ का प्राप्त किया जाना, भूमि की जुताई करना आदि की अनुमति भी प्रदान की जाती है किन्तु यहं इस शर्त पर दी जाती है कि ये जन्तुओं के लाभकारी क्षेत्रों में दखल नहीं देंगे।

(iii) जीवमण्डल निचय (Biosphere Reserves )– ये वृहत् भूमि क्षेत्र होते हैं जिनमें भूमि विविध प्रकार की क्रियाओं, जैसे-आनुवांशिक विविधता, वन्य जीव सुरक्षा, पारितन्त्र के प्रतिनिधि के रूप में, आदिवासी जातियों के परम्परागत आवास क्षेत्र, विभिन्न प्रकार के पौधों एवं जन्तु जातियों की सम्पदाओं के संरक्षण हेतु उपयोग में लायी जाती हैं।

ये यूनेस्को द्वारा 1975 में चलाये गये कार्यक्रम के अनुरूप MAB प्रोग्राम के अन्तर्गत स्थापित किये गये हैं।

जैसे- नीलगिरी, सुन्दरवन, मन्नार की खाड़ी एवं नन्दा देवी।

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