आज के उद्योगों में मजदूरों या कर्मचारियों की रुचि का ख्याल नहीं रखा जाता।
उनको ऐसे कार्यों को संपादित करने के लिए विवश किया जाता है जिनमें उनकी कोई रुचि ही नहीं होती।
ऐसी स्थिति में वे मनोवैज्ञानिक दबाव में जैसे-तैसे काम निपटाने और कम काम करने के लिए प्रेरित होते हैं।