भूमिका
आज के छात्र ही कल के राष्ट्र निर्माता हैं। अतएव छात्रों में उन गुणों का समावेश अत्यावश्यक है जिनसे राष्ट्र निर्माण में मदद मिलती है। शिष्टाचार उन कतिपय गुणों में एक है।
शिष्टाचार का अर्थ अब प्रश्न उठता है कि शिष्टाचार है क्या ? सूक्तिकार के अनुसार शिष्टाचार का अर्थ है दूसरे के प्रति प्रेम और आदर का भाव तथा वह आचरण जिससे दूसरे को असुविधा या कष्ट न हो। इस दृष्टि से छात्र-जीवन में शिष्टाचार अत्यन्त महत्वपूर्ण है।
छात्रावस्था में ही गुणों और अवगुणों की नींव पड़ती है जिससे छात्र के नागरिक जीवन का विकास होता है। यदि छात्र जीवन में दूसरों के प्रति प्रेम और आदर का भाव का विकास नहीं हुआ, दूसरे की सुविधा असुविधा समझने की भावना उत्पन्न न हुई तो सारी जिन्दगी वह मनुष्य राष्ट्र के लिए समस्या बना रहेगा और समाज को कलंकित करता रहेगा।
वह बात-बात में हंगामा करेंगा, लोगों को अपमानित करेगा और दूसरों को अपमानित करके अपना काम बना लेगा।
शिष्टाचार की शिक्षा
अतएव, यह आवश्यक है कि छात्रों को शिष्टाचार के बारे में इसके महत्व के बारे में अच्छी तरह समझाया जाय। इसकी शुरूआत हमें पहले घर से करनी चाहिए और बच्चों को बड़ों के प्रति आदर भाव रखना और छोटों से स्नेह करना बतलाना चाहिए।
इसके लिए माता-पिता को बच्चों के सामने उदाहरण रखना चाहिए क्योंकि बच्चे देखकर ही अधिक सीखते हैं। यदि माता-पिता ही शिष्टाचार का पालन नहीं करेंगे तो उनके बच्चे कैसे करेंगे ? विद्यालयों में यह शिक्षा गुरुजनों द्वारा दी जानी चाहिए। पुस्तकों के पाठों में भी शिष्टाचार का महत्व बताना चाहिए।
अशिष्टता के परिणाम आज छात्रों में शिष्टाचार के अभाव के अनेक उदाहरण देखने को मिलते हैं। कहीं किसी शिक्षक का अपमान होता है तो, कहीं छेड़खानी में लिप्त छात्रों की खबरें आती हैं। छात्र जीवन में दूसरों के प्रति आदर भाव न रखने के कारण ही बड़े होकर कुछ लोग जन-जीवन को दूषित कर रहे हैं।
आश्चर्य की बात यह है कि शिष्टाचारी बनने की अपेक्षा अशिष्ट बनने में लोग गौरव का अनुभव करने लगे हैं। एक-दूसरे की सहज असुविधा का ध्यान न रखने, उसकी भावना को न समझने के कारण लोकतंत्र के बुनियादी उसूल ढीले पड़ने लगे हैं।
उपसंहार
वस्तुतः आज बताने की जरूरत है कि यदि सभी अशिष्ट लिए जरूरी है कि छात्रों को शिष्टाचार की पूर्णरूपेण शिक्षा दी जाये ताकि भारत का सही अर्थों में नव-निर्माण हो सके।