पठित दोनों पदों के माध्यम से गुरु गोविंद सिंह ने सामाजिक कलह और भेदभाव को दूर कर लोगों में एकता का भाव भरने का भरपूर प्रयास किया है।
कवि के अनुसार सामाजिक कलह और भेदभाव मनुष्य की विवेकहीनता के कारण है। इसी विवेकहीनता के कारण मनुष्य विभिन्न खेमों में बँटा हुआ है।
हम मूलतः मनुष्य हैं, और एक ही ईश्वर की संतान हैं। मनुष्य ईश्वर की सर्वोत्तम कृति है। सबका ईश्वर एक है। मानव-मानव में विभेद करना हमारी भारी भूल है। ईश्वर को अलग-अलग रूपों में मानना हमारा भ्रम है।
सारा संसार एक ही ईश्वर के प्रकाश से प्रकाशमान है। इस सम्बन्ध में कवि ने स्पष्ट कहा है :
करता करीम सोई ......... एकै जोत जानबो।
कवि के अनुसार ईश्वर शाश्वत हैं, अविनाशी है। मनुष्य उसी विश्वरूप ईश्वर का अंश है।
जिस प्रकार आग से उत्पन्न कण पुनः आग में, धूलकण पुनः धूल में मिल जाते हैं, जल की तरंगें जल में ही समा जाती हैं, उसी प्रकार परमात्मा का अंश मनुष्य पुनः परमात्मा में ही विलीन हो जाता है।
जब सभी मनुष्य एक ही ईश्वर का अंश है, तो आपसी भेदभाव व्यर्थ है।
अतः कवि भगवद्भक्ति के इन पदों के माध्यम से हमें देशभक्ति एवं एकता का संदेश देता है। यहाँ कवि का उद्देश्य है, कि मनुष्य को यह आत्मबोध होना चाहिए कि वह मनुष्य है, उसका हर काम मानवीय गुणों से युक्त हो, तभी सारी सामाजिक बुराइयाँ स्वतः नष्ट हो जाएँगी।