मनुष्य की प्रगति और भारतीय रेल की प्रगति में लेखक शरद जोशी समानता देखते हैं। आज भारतीय रेल में जो अव्यवस्था है, वहीं अव्यवस्था मनुष्य के जीवन में भी है। पहले रेलें नहीं थीं तो पैदल यात्रा कष्टप्रद थी।
आज रेले हैं, फिर भी यात्रा वैसी ही कष्टप्रद हैं। जिस तरह रेल को मुम्बई से दिल्ली जाना है तो वह जाती है, उसमें सवार यात्री मरें या जीएँ उसको तो अपने गन्तव्य स्थान पर जाना है। उसमें चाहे धक्कम-धुक्का हो, चाहे यात्री।
खड़े होकर यात्रा करें, रेल को प्रगति करनी है। रेल की तरह भारतीय नीति-व्यवस्था में जनता को चाहे कितना ही कष्ट झेलना पड़े, इससे राजनेता को क्या लेना-देना है।