विश्व व्यापार संगठन(World Trade Organization) की स्थापना 1995 में हुई। इस संगठन का मुख्य उद्देश्य विश्व के देशों के बीच व्यापार के संचालन के लिए नियम तैयार करना था। यह संगठन विश्व व्यापार से संबंधित नियमों का निर्माण करता है। इस संगठन के निर्माण के पीछे GATT (Genral Agriment on Tread and Teriff) प्रस्ताव का महत्वपूर्ण योगदान है।
GATT प्रस्ताव पर सन् 1947 में हस्ताक्षर किए गए थे तथा बाद में 1995 में इसका नाम बदलकर WTO रख दिया गया।
संगठन की गतिविधियां नि०लि0 है:-
1. विश्व व्यापार में आने वाली बाधाओं को दूर करना तथा व्यापार से संबंधित नियमों का पालन करवाना जैसे- एंटी डंपिंग, सब्सिडी, उत्पादक मानक आदि।
2. सदस्य देशों के मध्य संधि के अनुप्रयोग तथा व्याख्या से उत्पन्न विवादों का समाधान करना
3. उन देशों के विकास की प्रक्रिया में सहयोग करना जो अभी तक इस संगठन के सदस्य नहीं है।
4. अर्न्तराष्ट्रीय व्यापार के संबंध में विकासशील देशों की सरकारों के क्षमता निर्माण में वृद्धि करना।
WTO और व्यापार व्यवस्था के सिद्धान्त:-
विश्व व्यापार संगठन की संधिया लंबी एवं जटिल है जिसमें कृषि, वस्त्र, परिधन, बैंकिंग, दूरसंचार, सरकारी खरीद, औद्योगिक मानक एवं उत्पाद सुरक्षा, खाद्य स्वच्छता तथा बौद्धिक संपदा आदि शमिल है। WTO द्वारा प्रशासित बहुपक्षीय व्यापार व्यवस्था के मुख्य सिद्धान्त नि०लि० है:-
1. अति प्रिय राष्ट्र:- विश्व व्यापार समझौतों के अधीन सामान्यतः कोई देश व्यापारिक सहयोगियों के मध्य भेदभाव नहीं कर सकता अर्थात् कोई देश किसी उत्पाद पर किसी अन्य देश को छूट प्रदान करता है तो उसे यह छूट सभी सदस्य राष्ट्रों को देनी होगी इसे ही अति प्रिय राष्ट्र का व्यवहार कहते हैं।
2. राष्ट्रीय व्यवहार:- राष्ट्रीय व्यवहार सिद्धांत के अनुसार राष्ट्रीय एवं विदेशी वस्तुओं के साथ एक समान व्यवहार किया जाना चाहिए। खासतौर पर जब विदेशी वस्तु बाजार में प्रवेश कर चुकी हो। यह बात विदेशी एवं घरेलू सेवाओं, व्यापार चिन्ह, कॉपीराइट तथा पेटेंट पर भी लागू होती है। राष्ट्रीय व्यवहार केवल उन वस्तुओं, सेवाओं या बौद्धिक संपदा पर लागू होता है जो बाजार में प्रवेश कर चुकी है। इसलिए आयात पर सीमाशुल्क लेना राष्ट्रीय व्यवहार का उल्लंघन नहीं है।
3. मुक्त व्यापार:- व्यापार को बढ़ावा देने के लिए WTO ने मुक्त व्यापार को बढ़ावा दिया है तथा सीमाओं पर लगने वाले प्रतिबंधों में कटौती की गई है जिससे आयात-निर्यात को सरल किया जा सके।
4. पुर्वानमान:- व्यापार को बढ़ावा देने के लिए कभी-कभी प्रतिबंध तो कम नहीं होते बल्कि नए प्रतिबंध रोक दिए जाते है। इसे की 'पुर्वानुमान' कहा जाता है इससे निवेश को प्रोत्साहन मिलता है।
5. स्वच्छ प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा:- WTO खुली स्वच्छ, अविकृत प्रतिस्पर्धा वाले नियमों पर आधारित व्यवस्था है। WTO की कुछ संधियों का लक्ष्य कृषि, बौधिक संपदा सेवाऐं आदि में स्वच्छ प्रतिस्पर्धा को प्रोत्साहन देना है। जिससे ग्राहकों को उच्च गुणवत्ता वाली वस्तु कम दामों में प्राप्त हो जाती है।
6. विकास एवं आर्थिक सुधार:- WTO व्यवस्था आर्थिक सुधारों को बढ़ावा देती है विकास की गति तेज होती है WTO की नीतियां विकासशील देशों के लिए विशेष सहायता और व्यापार रियायत देती है परंतु इन नीतियों की सफलता के लिए विकासशील राष्ट्रों की अपनी घरेलू नीतियों में कुछ बदलाव आवश्यक है।
WTO की संरचना व निर्णयन प्रक्रिया:-
WTO व्यापार नियम बनाने वाली सर्वोच्च संस्था है इसकी बैठक हर दो वर्ष में होती है जिसमें सभी सदस्य देशों के प्रतिनिधि शामिल होते है इसके अलावा प्रतिदिन कार्य करने के लिए इसके अनेक अंग बनाए गए है जिनमें सबसे प्रमुख है 'सामान्य परिषद्'। यह परिषद् व्यापारिक विवादों का निपटारा तथा व्यापार नीतियों की समीक्षा का कार्य करती है।
पाँच अन्य इकाईयां :- WTO में सामान्य परिष्द् की तरह ही पाँच अन्य इकाईयां बनाई गई है। ये निम्नलिखित है-
- व्यापार और विकास समिति
- विकास और पर्यावरण समिति
- क्षेत्रीय व्यापार संधि समिति
- भुगतान संतुलन समिति
- बजट वित्त एवं प्रशासन संबंधि समिति।
निर्णयन प्रक्रिया:- WTO से सभी निर्णय सदस्य देशों की सहमति से लिए जाते है जिनकी बैठके WTO के मुख्यालय जिनेवा में होती है हाँलाकि यह हो सकता है कि किसी विषय पर सभी देशों की सहमति न बन सके परंतु यह प्रयास किया जाता है कि निर्णय सभी सदस्य देशों के अनुकूल हो। यदि फिर भी कोई देश यदि सहयोग नहीं करता तो उस पर आर्थिक प्रतिबंध भी लगाए जाते है।
WTO की संरचना:- WTO की संरचना को हम निम्नलिखित बिन्दुओं से विस्तार पूर्वक समझ सकते है-
1. मंत्रिस्तरीय बैठक:- WTO की सर्वोच्च इकाई मंत्रिस्तरीय बैठक है यह बैठक किसी भी बहुपक्षीय व्यापार संधि से संबंधित मुद्दो पर निर्णय ले सकती है।
2. सामान्य परिषद् :- द्वितीय स्तर पर सामान्य परिषद् है जिसकी तीन ईकाईयां है तथा प्रतिदिन के होने वाले कार्य इसी परिषद् की देख रेख में किए जाते है। सामान्य परिषद् विवादों का निपटारा तथा नीति निमाण के कार्य करती है।
3. अन्य परिषद्:- तीसरे स्तर पर अन्य परिषदे होती है जो व्यापार के क्षेत्र से सम्बन्धित होती है। इसमें व्यापार संबंधी परिषद्, सेवा परिषद्, ट्रिप्स परिषद् प्रमुख है। इनका उद्देश्य प्रतिस्पर्धा और परदर्शिता को बढ़ाना है।
4. उच्चस्तरीय परिषद् की इकाईयाँ:- इस परिषद् की 11 समितियाँ है जो विभिन्न विषयों से संबंधित है जैसे कृषि, बाजार पहुँच, सब्सिडि, एंटी डंपिंग उपाय आदि। इस परिषद् में विशेषज्ञों का एक पैनल होता है जो विवादों को सुलझाने के लिए नियुक्त किया जाता है।
निषकर्ष:- WTO के लगभग 147 सदस्य है और ये विश्व के 97 प्रतिशत भाग पर अधिकार रखता है। यह एक मात्र संगठन है जो राष्ट्रों के मध्य होने वाले व्यापार के वैश्विक नियमों से जुड़ा है WTO का मुख्य लक्ष्य विश्व व्यापार के प्रवाह को तीव्र करना है इसकी विभिन्न परिषदे WTO के कार्यों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
WTO असमानता को कम करने, नियमबद्ध संगठन के उत्पाद तथा भेदभाव रहित व्यवस्था बनाने में महत्वपूर्ण निभाता है यहां किए गए समझौते विकसित और विकासशील देशों, दोनों की समान भागीदारी से लिए गए सर्वसम्मत नियमों पर आधारित होते है, जिससे नियमन प्रकिया तथा विवादों के निस्तारण में मदद मिलती है।