युरोप मे अधिनायाकवाद के उद्य पर टिप्पणी करें Europe main Adhinayakbaad ke Uadya pr Tippni kre ?
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युरोप मे अधिनायाकवाद के उद्य पर टिप्पणी करें Europe main Adhinayakbaad ke Uadya pr Tippni kre ? 

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उत्तरः- इटली मे फासीवाद का जन्म प्रथम विश्व युद्ध के बाद हुआ। इटली प्रथम विश्व युद्ध में मित्र राष्ट्रों के साथ मिलकर लड़ा था तथा युद्ध में इटली को भारी नुक्सान उठाना पड़ा। इटली के छः लाख सैनिक मारे गए और 12 अरब डॉलर खर्च हुए परंतु छतिपूर्ति के नाम पर इटली को जो धनराशि प्राप्त हुई। वह उसकी अपेक्षा के अनुरूप नहीं थी। विश्व युद्ध के कारण इटली की आर्थिक दशा दयनीय हो गई थी उसकी मुद्रा का मूल्य 70% तक कम हो गया वस्तुओं की कीमतें आसमान छूने लगी लोगो का लोकतंत्र विश्वास उठ गया क्योंकि लोकतंत्र सरकार जनता की आवश्यकताओं को पूरा कर पाने में असमर्थ हो रही थी। ऐसी स्थिति में इटली की राजनीति में मुसोलीनी का उदय हुआ । उसने इटली की जनता को उसका खोया हुआ आत्मसम्मान पुन : प्राप्त करने का आश्वासन दिया जनता उसके विचारो और व्यक्तित्व से बहुत प्रभावित हुई व जनता के मुसोलीनी के फासीस्ट दल को समर्थन दे दिया।

फासीवाद का अर्थ : फासीवाद को अंग्रेजी में Fascism कहते हैं जो इटैलियन भाषा के शब्द fascio से बना हैं जिसका अर्थ हैं लकड़ियों का बण्डल तथा कुल्हाड़ी जिसमें लकड़ी का बण्डल एकता का प्रतीक हैं और कुल्हाड़ी शक्ति का । मुसोलीनी के फासीवादी दल ने इसी चिन्ह को अपनाया। सेबाइन के अनुसार :- " फासीवाद विभिन्न स्रोतो से लिए गए ऐसे विचारों का समूह है जिन्हे परिस्थति कि आवश्यकतानुसार एकत्र कर लिया गया है "

फ्रासीवाद के उदय के कारण

i) वर्साय की संधि :- प्रथम विश्व युद्ध के पश्चात् इटली को यह आशा थी कि छतिपूर्ति के रूप में उसे उचित लाभ प्राप्त होगा परन्तु वर्साय की संधि में मित्र राष्ट्रों के इटली को अनदेखा कर दिया जिससे इटली को जैसी अपेक्षा थी वैसा लाभ प्राप्त नही हुआ जिसके कारण इटली को काफी निराशा हुई इटली, आस्ट्रिया और अफ्रीका के कुछ भागो मे अपना साम्राज्य स्थापित करना चाहता था परन्तु वर्साय की संधि में उसकी ये आशा पूर्ण न हो सकी जिसके कारण इटली में असंतोष उत्पन्न हो गया जो फासीवाद के उदय का कारण बना।

ii) लोकतंत्र की असफलता :- प्रथम विश्व युद्ध के बाद इटली की परिस्थितियां बहुत बदल गयी तथा वहां अराजकता, असंतोष, बेरोजगारी तथा मंहगाई बहुत बढ़ गई जिस पर लोकतांत्रिक सरकार नियंत्रण न रख सकी जिसका लाभ मुसोलीनी के फासीवाद दल को मिला क्योंकि जनता के मुसोलीनी के अलावा अन्य कोई विकल्प नहीं था। जो इटली की बदतर हालत में सुधर कर सके

तत्कालीन इटली सरकार से पूंजीपति, मजदूर, छात्र सरकारी कर्मचारी, दुकानदार आदि सभी लोगो को नाराजगी थी ऐसी स्थिति मे फासीवाद दल ही उन्हे उम्मीद की एकमात्र किरण नजर आता था इसलिए धीरे - धीरे फासीवाद दल के समर्थको की संख्या मे विस्तार होने लगा।

iii) साम्यवाद का भय :- रूस मे सम्यवादी क्रांति होने के पश्चात् यूरोप के सभी देश धीरे - धीरे साम्यवाद की ओर आकर्षित हो रहे थे और इटली मे भी जनता साम्यवाद को पसंद करने लगी थी जिससे जमीदार व पूंजीपति वर्ग भयभीत था जबकि मुसोलीनी साम्यवाद का कहर विरोधी था। इसलिए उसे पूंजीपति व जमीदार वर्ग का भी समर्थन प्राप्त हो गया तथा फासीवाद का विकास तेजी से होने लगा।

iv) मुसोलीनी का व्यक्तित्व :- मुसोलिनी एक उग्रवादी विचारक था और उसका एक मात्र लक्ष्य इटली के खोए हुए आत्म सम्मान को प्राप्त करना था जिसके लिए उसने उचित -अनुचित, धर्म-अधर्म आदि की भी चिंता नही की उसने राष्ट्रीय एकता पर बहुत ज़ोर दिया। मुसोलीनी ने नारा दिया “ व्यवस्था, अनुशासन तथा सत्ता" जो इटली में बहुत लोक प्रिय हुआ। और इटली की जनता ने पुर जोर - शोर के साथ मुसोलिनी का सहयोग आरंभ कर दिया जिससे फासीवाद के विकास में बढ़ावा हुआ।

आर्थिक संकट :- फासीवाद के विकास का एक मुख्य कारण इटली मे छाई महामंदी थी जिससे इटली की अर्थव्यवस्था बुरी तरह चरमरा गई। 1920 के बाद इटली की अर्थव्यवस्था को भरी क्षति पहुँची थी । सरकार आर्थिक सुधार के जो प्रयास कर रही थी उनका कोई विशेष प्रभाव नहीं पड़ रहा था जगह - जगह पर विद्रोह , हड़तालें और दंगे होने लगे जिन पर सरकार नियंत्रण करने में असफल रही। 1921 में चुनाव हुए परन्तु बहुमत न होने के कारण कोई भी स्थिर सरकार नही बन सकी मुसोलिनी ने इटली की इस दुर्दशा का जिम्मेदार सरकार को ठहराया तथा वह खुलेआम सत्ता पर कब्जा करने की धमकियाँ देने लगा।

हीगल के सिद्दांतो का प्रचार :- प्रथम विश्व युद्ध के बाद इटली में हीगल के राज्य सम्बन्धी विचारों का प्रचार बढ़ने लगा। हीगल के समान मुसोलिनी भी शक्ति को राज्य का आधार मानता है । मुसोलिनी के अनुसार “सब कुछ राज्य के भीतर है राज्य के बहार कुछ नहीं और राज्य के विरुद्ध कुछ नहीं “। राज्य की सर्वोच्चता सम्बंधी इन विचारों के अराजकता के वातावरण में फासीवादी दल को लोकप्रिय बनाने में सहायता की।

निष्कर्ष :- प्रथम विश्व युद्ध में जीत के पश्चात् भी इटली हार गया तथा भरी हानि उठाने के बावजूद उसे उसका हिस्सा नही दिया गया विश्व युद्ध में भाग लेने के कारण इटली की बड़ी दुर्दशा हो गई पर लोकतांत्रिक सरकार इस स्थिति को सुधारने में नाकाम रही जिसका लाभ उठाकार मुसोलिनी ने इटली में फासीवाद को बढ़ावा देना आरंभ कर दिया। शुरू मे उसने लोकतांत्रिक तरीके से सत्ता हासिल करने की कोशिश की परन्तु 1921 के चुनावों में उसके दल को केवल 35 सीटे प्राप्त हुई। पर इस समय तक फासीवादी दल बहुत शक्तिशाली हो चुका था मुसोलिनी अब जबरन सत्ता पर कब्जा करने की धमकियाँ देने लगा।

27 अक्ट्बर 1922 को उसने 30 हजार फासिस्टो के साथ रोम के लिए कूच किया भयंकर युद्ध से बचने के लिए सम्राट इमेनुअल III के उसे प्रधानमंत्री नियुक्त कर दिया इसके बाद वह धीरे - धीरे इटली का सर्वेसवी बन गया उसने विरोधियो को या तो मरवा दिया या जेलों में ठूंस दिया। सम्यवादी आंदोलनों को सख्ती से कुचल दिया गया तथा विस्तारवादी नीति को अपनाया| मुसोलिनी की ये उग्रता ही IInd विश्व युद्ध का कारण भी बनी।

जर्मनी में नाज़ीवाद

प्रथम विश्व युद्ध में पराजित होने के पश्चात् जर्मनी के आत्म सम्पर्ण कर दिया इसके बाद जर्मनी के साथ मित्र राष्ट्रों के बहुत बुरा बर्ताव किया तथा उसे सैनिक आर्थिक रूप से कमज़ोर करने के लिए वर्साय की संधि का आयोजन किया गया इसके बाद जर्मनी की अंतरिक परिस्थितियाँ तेजी से बदलने लगी अराजकता , आर्थिक संकट और छतिपूर्ति की भारी भरकम धन राशि ने जर्मनी की दुर्दशा कर दी तथा वाइमार गणतंत्र बुरी तरह असफल हो गया और इन्ही खराब परिस्थितियो के कारण हिटलर का नाज़ी दल जर्मनी की सत्ता में आया।

नाज़ी क्रांति के उदय के कारण

नाज़ीदल का मूल नाम “राष्ट्रिय समाजवादी जर्मन मजदूर दल" था जिसका संस्थापक ऐडोल्फ हिटलर था 1923 से 1929 तक नाज़ीदल के पार्टी को मजबूत बनाने में समय खर्च किया। इसके बाद 1932 के चुनावों में नाज़ीदल को 13 स्थान प्राप्त हुए 30 जनवरी 1933 को हिण्डेनबर्ग के हिटलर को जर्मनी का चांसलर नियुक्त किया। नाज़ीदल की इस सफलता को हम निम्मलिखिती प्रकार से समझ सकते है।

वर्साय की संधि :- प्रथम विश्व युद्ध के हारने के पश्चात् जर्मनी को मित्र राष्ट्रों के साथ वर्साय में संधि करनी पड़ी । मित्र राष्टों का उद्देश्य जर्मनी को आर्थिक व सैनिक रूप से कमजोर करना था अत: मित्र राष्ट्रों के जर्मनी को युद्ध का जिम्मेदार ठहराते हुए बहुत बड़ी रकम क्षतिपूर्ति के रूप में देने के लिए मजबूर किया तथा उसकी 15% क्रषि योग्य भूमि 12% पशुधन और 10% कारखाने उससे छीन लिए गए तथा सार घाटी की कोयला खाने छीनकर फ्रांस को दे दी गई तथा राईन घाटी का अंतराष्ट्रीयकरण कर दिया गया ।

जर्मनी की सैनिक संख्या एक लाख निश्चित की गई तथा पंडुब्बीयाँ और लडाक विमान रखने पर पूरी तरह प्रतिबंध लगा दिया जिससे जर्मनी भविष्य में मित्र राष्ट्रों का सामना न कर सके। जर्मनी अपने साथ हुए अपमान का बदला लेना चाहता था

आर्थिक संकट :- विश्व में 1929 से लेकर 1933 तक गंभीर आर्थिक संकट का दौर रहा जर्मनी की हालत आर्थिक संकट व क्षतिपूर्ति की भारी रकम के कारण और अधिक खराब हो गई 1930 में अकेले जर्मनी में 50 लाख लोग बेरोजगार हो गए हिटलर के जर्मनी सरकार को इस स्थिति का जिम्मेदार ठहराया तथा जनता को यह विश्वास दिलाया की जर्मनी की बुरी हालतो में अब केवल वही सुधार कर सकता है इसलिए जनता हिटलर के साथ हो गई।

साम्यवाद का भय :- 1917 की रूसी क्रांति के पश्चात् विश्व के विभिन्न देशो में साम्यवाद का तेज़ी से प्रसार होने लगा| तथा जर्मनी के पूंजीपति साम्यवाद के बढ़ते प्रभाव से बहुत अधिक भयभीत थे| हिटलर भी साम्यवाद को अपने मार्ग में बाधा मानता था इसलिए हिटलर को जर्मनी पूंजीपति व ज़मीदार वर्ग का भी समर्थन प्राप्त हो गया जिससे नाज़ीवाद को बढ़ावा मिला ।

यहूदी विरोधी आंदोलन :- जर्मन जनता का समर्थन प्राप्त करने के लिए हिटलर ने व्रहद यहूदी सफ़ाई अभियान चलाया। इस समय यहूदी जर्मनी में अच्छी स्थिति में थे जर्मनी में बड़े - बड़े उधोगों पर यहूदियों का नियंत्रण था। साधारण जनता उन्हे शोषक मानकर उनसे घृणा करती थी इसलिए हिटलर ने जर्मनी के लोगो की बुरी स्थिति का जिम्मेदार यहूदियों को ठहराया उसकी यहूदी विरोधी शैली जर्मन जनता में बहुत लोकप्रिय हुई फलस्वरूप जर्मनी में नाज़ीवाद के विस्तार को बढ़ावा मिला।

हिटलर का व्यक्तित्व :- नाज़ीदल की सफलता का एक मुख्य कारण हिटलर का आकर्षक व्यक्तित्व भी था। उसके भाषणों में जनता को मंत्रमुग्ध करने की अदभुत शक्ति थी। तथा वह जनता की भावनाओं को भली भांति जनता था उसमें केता बनने के सभी गुण मौजूद थे हार्डी के अनुसार - "उसमें विलक्षण प्रतिभ्प शक्ति थी चाहे वह प्रतिभा दिव्य न होकर राक्षसी थी" ।

गुंथर के अनुसार " उसने अपनी जादू भरी वाणी से जर्मन जनता पर अपना अधिकार स्थापित कर लिया जब वह जर्मन जाति के एक सूत्र में बांधकर विशाल जर्मन साम्माज्य का निर्माण करने की बात कहता तो जर्मन जनता पागल हो जाति और यह अनुभव करने लगती की जर्मनी का उदार केवल हिटलर और नाजीदल ही कर सकता है ।

नाजीदल का आकर्षक कार्यक्रम :- नाजीदल का आकर्षक कार्यक्रम जनता के अनुरूप था जिसके कारण नाजीदल को अपार लोकप्रियता मिली | नाजीदल के कार्यक्रम नि०लि॰ थे।

i) वर्साय की संधि को समाप्त करना

ii) जर्मनी एकता को समाप्त करना

iii) जर्मनी से छीने उपनिवेशों को पुन: प्राप्त करना

iv) यहूदियों को जर्मनी से बहार निकालना v) साम्यवाद का नाश करना तथा संसदीय प्रणाली का अंत करना ।

हिटलर के इस कार्यक्रम से जनता अत्याधिक प्रभावित हुए तथा उसने नाजीदल को समर्थन दे दिया ।

जातीय उत्क्रष्टता का प्रचार :- हिटलर ने जर्मनी जाति की सर्वोच्चता का प्रचार किया उसने जर्मन नस्ल की सर्वोच्चता का प्रभावपूर्ण ढंग में मनोवैज्ञानिक प्रभाव स्थापित किया | फ्रेडरिक महान् , बिस्मार्क और कैसर विलियम द्वितीय जैसे वीर नायकों की पूजा से और उनके नेतृतव में जर्मनी के प्रभुत्व के प्रचार के कारण जर्मन जनता में स्वाभाविक रूप से सैनिक मनोव्रत्ति का विकास हुआ। अत: जर्मन की महान परम्परा और जातीय सर्वोच्चता की भावना भी नाजी उत्पान का एक कारण थी

सैना तथा नौकरशाही का समर्थन :- हिटलर को सेना और नौकर शाही से भी प्रबल समर्थन प्राप्त हुआ उसका उग्रवादी कार्यक्रम और जर्मनी के शस्त्रीकरण की मांग सैनिको और भूतपूर्व सैनिको को पसंद आई । उसके परिणामस्वरूप सेना उसकी समर्थक बन गई । दूसरी तरफ हिटलर द्वारा अनुशासन तथा देश - प्रेम पर अत्याधिक जोर देने के कारण नौकरशाही भी उससे सहानुभूति रखने लगी। नौकरशाही वाइमर गणतंत्र की लोकतांत्रिक प्रणाली से असंतुष्ट थी और ऐसी सरकार चाहती थी जो मजबूत तथा अनुशासन प्रिय हो | नाजीदल जनता की इस आशा को पूरा कर सकता था।

वाईमर गणतंत्र की असफलता :- प्रथम विश्व में हार के पश्चात् जर्मनी के एथेंस वाइमर में एक नए सविधान का निर्माण किया गया परंतु विश्व युद्ध, क्षतिपूर्ति की राशि और महान आर्थिक मंदी ने वाईमर गणतंत्र को सफल नही होने दिया यहाँ तक की जर्मनी की खराब दशा के कारण जर्मनी को राष्ट्र संघ का सदस्य भी नही समझा गया जिसमें जर्मन जनता में वाईमर गणतंत्र के विरुद्ध रोष उत्पन्न हो गया जिससे नाजीवाद को बढ़ावा मिला।

निष्कर्ष :- नाजीवाद के उदय का मुख्य कारण वर्साय में जर्मनी का अपमान ही था परंतु लगातार बदलती परिस्थितियों के कारण जर्मनी की हालत बद्तर होती चली गई। आर्थिक मंदी, साम्यवाद के भय ने जर्मनी में हिटलर की लोकप्रियता में और अधिक वृद्दि की । 1932 में हिटलर 'हिण्डेनबर्ग' के विरुद्ध राष्ट्रपति चुनावों में हार गया परंतु उसे 37% मत प्राप्त हुए | 'पोपेन' की सलाह पर 'हिण्डेनबर्ग' ने उसे प्रधान मंत्री बना दिया। 1933 में जर्मनी संसद में आग लग गई हिटलर ने इसे साम्यवादी षड्यंत्र कहकर , साम्यवादी दलों पर प्रतिबंध लगा दिया तथा नेताओं को जेल में डाल दिया 'हिण्डेनबर्ग' की म्रत्यु के पश्चात् उसने राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री दोनों पदों को मिला दिया और जर्मन का राष्ट्रपति बन गया।

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