बैंकों का निजीकरण को समझाएं। Bankon Ka Nijikaran Ko Samjhaen.
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बैंकों का निजीकरण को समझाएं। Bankon Ka Nijikaran Ko Samjhaen.

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आर्थिक सुधारों की प्रक्रिया के अंतर्गत वर्ष 1992 से भारत सरकार द्वारा बैंकिंग क्षेत्र द्वारा बैंकिंग क्षेत्र में निजी बैंकों के प्रवेश की अनुमति दे दी गई है। अब एक निश्चित प्रक्रिया का पालन करने के पश्चात् निजी बैंक भारत में अपना कारोबार कर सकते हैं।

ये बैंक कम्पनी अधिनियम 1956 ( वर्तमान में कम्पनी अधिनियम 2013) के अंतर्गत पंजीकृत होते हैं तथा इन पर बैकिंग नियमन अधिनियम तथा रिजर्व बैंक अधिनियम लागू होता है। इन बैंकों की पूँजी 200 करोड़ रुपये होती है तथा इनके अंश प्रतिभूति बाजार में लिस्टेड होते हैं।

एक अंशधति के केवल 1 प्रतिशत का मताधिकार प्राप्त होता है।

विशेषज्ञों का मत है कि बैंकिंग क्षेत्र में निजी बैंकों के प्रवेश से प्रतिस्पर्धा में बढावा मिलेगा तथा ग्राहकों को बेहतर सुविधाएँ प्राप्त हो सकेंगी।

बैंकों के निजीकरण के लाभ

(क) बैंक अपनी पूँजी स्वयं जुटायेंगे जिससे सरकार पर वित्तीय दबाव में कमी आयेगी। (ख) अनुशासन में वृद्धि होगी तथा ग्राहकों को समुचित सुविधाएँ प्राप्त हो सकेंगी। (ग) बैंकों में प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी तथा ग्राहक सेवा के स्तर में वृद्धि होगी। (घ) कर्मचारियों में लालफीताशाही कम होगी।

(ङ) बैंकों की लाभदायकता बढ़ेगी जिससे देश के आर्थिक विकास में वृद्धि होगी। बैंकों के निजीकरण के दोष।

(ख) कर्मचारियों में असंतोष बढ़ेगा तथा वे खुलकर विरोध करेंगे। (ग) सरकार के सामाजिक उद्देश्यों की पूर्ति नहीं हो सकेगी। (घ) बैंक केवल कुछ घरानों तक सीमित होकर रह जायेंगे । (ङ) आम जनता को बेहतर सुविधाएं प्राप्त नहीं हो सकेंगी। अतः सरकार को बैंकों का निजीकरण करते समय विभिन्न पहलुओं पर ध्यान देना होगा तथा किसी भी हालत में सम्पूर्ण निजीकरण उचित नहीं ठहराया जा सकता। 

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