भारत के स्वतंत्रता आन्दोलन के समय गाँधीजी ने सबसे पहले बुनियादी शिक्षा की कल्पना की थी। आज जिसे विश्वविद्यालय स्तर पर 'फाउंडेशन कोर्स' कहा जाता है, उसकी पृष्ठभूमि में गाँधी की बुनियादी यानी बेसिक शिक्षा ही तो थी । इस बुनियादी प्रशिक्षण और प्राथमिक स्तर की शिक्षा के दो स्तर थे - स्कूली बच्चे कक्षा एक से ही तकली से सूत कातते थे; रूई से पौनी बनाते थे और सूत की गुड़िया बनाकर या तो खादी भंडारों को देते थे या बैठने के आसन, रूमाल, चादर आदि बनाते थे।
शिक्षा के बारे में गाँधीजी का दृष्टिकोण वस्तुतः व्यावसायपरक था। उनका मत था कि भारत जैसे गरीब देश में शिक्षार्थियों को शिक्षा प्राप्त करने के साथ-साथ कुछ धनोपार्जन भी कर लेना चाहिए जिससे वे आत्मनिर्भर बन सकें।
एक नए अध्ययन के अनुसार कम उम्र के ज्यादा से ज्यादा लोग विश्वविद्यालयों की डिग्रिया ले रहे हैं, लेकिन रिपोर्ट बताती है कि जब बात बुनियादी साक्षरता या लैंगिक समानता की हो तो हाल अब भी अच्छे नहीं हैं।
आर्थिक सहयोग और विकास संगठन ने शिक्षा की स्थिति पर अपना एक अध्ययन प्रकाशित किया है। विकसित देशों द्वारा 1960 के दशक में गठित संगठन ओईसीडी शिक्षा में निवेश किए गए वित्तीय और मानव संसाधन स्कूलों के सीखने के माहौल, स्कूल और अन्य संगठनों जैसे मुद्दों पर महत्वपूर्ण जानकारी देकर स्कूलों और विश्वविद्यालों की स्थिति को बेहतर करने में सरकारों की मदद करती है ताकि उन्हें बेहतर और सुलभ बनाया जा सके।
इस रिपोर्ट में सामने आया है कि विश्वविद्यालयों में पढ़ने वाले कम उम्र के लोगों की संख्या लगातार बढ़ी है। सन् 2000 में 26 प्रतिशत छात्र 25 से 34 साल की उम्र के थे। 2016 में यह प्रतिशत बढ़कर 46 प्रतिशत हो गया। विश्वविद्यालय के छात्रों के लिए अध्ययन के सबसे आम क्षेत्र व्यवसाय, प्रशासन और कानून हैं और उच्च शिक्षा में 23 प्रतिशत अधिक नौजवान इन क्षेत्रों को चुन रहे हैं।
हालांकि उच्च शिक्षा के लिए विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग और गणित जैसे क्षेत्रों को चुनने का औसत कम है। इंजीनियरिंग और निर्माण क्षेत्र में 16 प्रतिशत, विज्ञान, गणित और सांख्यिकी में 6 प्रतिशत ।