राजनीतिक समाजशास्त्र क्या है? इसके अध्ययन क्षेत्र को स्पष्ट कीजिए। Rajnitik Samajshastra Kya Hai? Iske Adhyayan Kshetra Ko Spasht Kijiye.
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राजनीतिक समाजशास्त्र क्या है? इसके अध्ययन क्षेत्र को स्पष्ट कीजिए। Rajnitik Samajshastra Kya Hai? Iske Adhyayan Kshetra Ko Spasht Kijiye. 

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बाटोमोर के अनुसार "राजनीतिक समाजशास्त्र का सम्बन्ध सामाजिक सन्दर्भों में शक्ति से है ।

 " शक्ति (Power) से तात्पर्य किसी व्यक्ति या समूह की उस योगरूता से है जिसक द्वारा वह व्यक्ति या समूह किन्हीं दूसरे व्यक्तियों या समूहों के विरूद्ध निर्णयों को बदलने की क्षमता रखता है।

 सामान्य अर्थों में हम कह सकते हैं कि जब कोई व्यक्ति किसी सामाजिक व्यवस्था में रहते हुए अपने आसपास की घटनाओं या सामाजिक निर्णयों को बदलने की क्षमता को विकसित कर लेता है तब वह शक्ति का केन्द्रीयकरण करता है। 

शक्ति के इस केन्द्रीयकरण की सम्पूर्ण प्रक्रिया का अध्ययन ही राजनीतिक समाजशास्त्र का प्रमुख केन्द्र बिन्दु है। अमल कुमार मुखोपाध्याय के अनुसार "राजनीतिक समाजशास्त्र वह विषय है जो उन राजनीतिक घटनाओं का अध्ययन करता है जो अनिवार्यतः सामाजिक सम्बन्धों से जुड़ी है।

" यह परिभाषा राजनीतिक समाजशास्त्र की सरलतम व्याख्या प्रस्तुत करती है तथा यह भी स्पष्ट करती है। कि राजनीतिक समाजशास्त्र की विषय वस्तु क्या हो सकती है अतः हम कह सकते हैं कि राजनीतिक समाजशास्त्र वह विषय है जो राजनीति विज्ञान और समाजशास्त्र से मिलकर बना है किन्तु अब उसे अपनी विषय-वस्तु की खोज स्वतन्त्र रूप से कर ली है तथा स्वयं को स्वतंत्र विज्ञान के रूप में स्थापित किया है।

राजनीतिक समाजशास्त्र को जहाँ टॉम बाटोमोर शक्ति के सन्दर्भ में देखते हैं, वहाँ मुखोपाध्याय अपनी परिभाषा में राजनीतिक घटनाओं के समाजशास्त्रीय अध्ययन की चर्चा करते हैं।

 एक अन्य समाजशास्त्री का कथन है कि “राजनीति का समाजशास्सा' ही 'राजनीतिक समाजशास्त्र' है किन्तु इसमें कुछ समावेश और करना पड़ेगा" इस प्रकार विभिन्न परिभाषाएँ राजनीतिक समाजशास्त्र के विद्यार्थी को दिग्भ्रमित करती हैं।

राजनीतिक समाजशास्त्र का अध्ययन क्षेत्र (Scope of Political Sociology ) राजनीतिक समाजशास्त्र की प्रकृति और अध्ययन क्षेत्र के विषय में अनेक विद्वानों ने अपने मत प्रकट किए हैं। लिप्सेट और रोकान ने स्पष्ट रूप से कहा है कि राजनीतिक समाजशास्त्र; अन्तर्विषयक संकर (Interdisciplinary Hybrid) है जो राजनीतिक और सामाजिक; व्याख्यात्मक चरों (Explamatory Variable) को आत्मनिर्भर किन्तु अन्तः क्रियात्मक चरों के रूप में देखता है। 

आधुनिक समय में राजनीतिक समाजशास्त्र बहुत तीव्र गति से आगे बढ़ रहा है। किन्तु क्या गति में तीव्रता से इसने परिपक्वता को भी प्राप्त कर लिया है ? राजनीतिक समाजशास्त्र परिपक्व विषय है अथवा नहीं यह ज्ञात करने के लिए हमे इसके अध्ययन क्षेत्र का अध्ययन करना होगा। राजनीतिक समाजशास्त्र का अध्ययन क्षेत्र निम्न हैं:

( 1 ) राजनीतिक क्रम की सामाजिक स्थापना (Social Foundations of Political order) — राजनीतिक समाजशास्त्र की मान्यता है कि राजनीतिक क्रमबद्धता का निधर्झरण सामाजिक संगठन और सांस्कृतिक मूल्यों के आधार पर होता है। राजनीतिक क्रम की सर्वाधिक महत्वपूर्ण समस्या यह है कि इसका निर्धारण शक्ति के लिए संघर्ष के आधार पर होता है। राजनीतिक समाजशास्त्र का सम्बन्ध शासन के औपचारिक क्रम से नहीं है यह राजनीतिक क्रम का निर्धारण शक्ति के लिए संघर्ष का आधार पर करता है। जैसा कि टॉम बाटामोर स्पष्ट करते हैं कि रजानीति का केन्द्र शक्ति है। अतः यह कहा जा सकता है कि राजनीतिक समाजशास्त्र शक्ति के लिए संघर्ष का अध्ययन करता है।

(2) राजनीतिक व्यवहार के सामाजिक आधार (Social bases of Political Behaviour)-‘‘राजनीतिक समाजशास्त्री राजनीति में व्यक्ति के व्यवहार का अध्ययन करते हैं। वे यह जानने का प्रयास करते हैं कि व्यक्ति क्यों किस प्रकार वोट देता है ।

 " उक्त वक्तव्य का अर्थ है कि व्यक्ति राजनीति में किस प्रकार की प्रेरणाओं से प्रेरित होकर राजनीतिक व्यवहार करता है।

 जैसा कि पारसन्स और शिल्स ने तीन तरह की प्रेरणाओं (विश्वासात्मक, भावनात्मक तथा मूल्यांकित प्रेरणाओं) की चर्चा की है। चुनाव में वोट डालते समय या मत निर्धारण करते समय व्यक्ति किन आधारों पर अपने द्वारा किए जाने वाले चयन का निर्धारण करता है।

 राजनीतिक आन्दोलनों, राजनीतिक समितियों और समूहों में उसकी भूमिका क्या रहती है, तथा किस आधार पर वह (व्यक्ति) व्यवहार करता है, इन सभी का अध्ययन राजनीतिक समाजशास्त्र में किया जाता है। 

मनोवैज्ञानिकों का कथन है कि अपने इस विषय क्षेत्र के अन्तर्गत राजनीति समाजशास्त्र और मनोविज्ञान का त्रिवेणी का निर्माण होता है। इन तीनों विषयों की अन्तर वैषयिक पद्धतियों के आधर पर राजनीतिक समाजशास्त्र अध्ययन करता है।

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