उन्नीसवीं शताब्दी के धर्म एवं समाज सुधार आंदोलनों ने बुद्धिजीवी, नगरीय उच्च जातियों एवं निर्धन सर्वसाधारण वर्ग को अपनी ओर आकर्षित किया।
19वीं सदी के धार्मिक एवं सामाजिक सुधार आंदोलन का भारत के इतिहास में विशेष स्थान है। इसने जहां एक ओर धार्मिक एवं सामाजिक सुधारों का आह्वान किया, वहीं दूसरी ओर इसने भारत के अतीत को उजागर कर भारतवासियों के मन में आत्म-सम्मान और आत्म-गौरव की भावना जगाने की कोशिश की।