दीन-ए-इलाही का मूल उद्देश्य वैश्विक निष्ठा (Global Loyalty) था। इस धर्म को अकबर ने 1582 ई. में चलाया था। इस धर्म को मानने वाले को सम्राट में पूर्ण आस्था रखना पड़ता था।इस धर्म को तौहिद-ए-इलाही धर्म भी कहा गया है।
इस धर्म को मानने वाले को प्रतीकात्मक रूप से अपना शरीर, धन-सम्पति, मान-सम्मान और धर्म को सम्राट के समक्ष समर्पण करना होता था।
दीन-ए-इलाही संवत् 1583 ई० में प्रारंभ किया गया। इस धर्म को मानने वाला पहला और अंतिम हिन्दू बीरबल था। (बड़े हिन्दुओं में) बीरबल का वास्तविक नाम महेश दास था।