गोपालकृष्ण गोखले (Gopal Krishna Gokhale) उदारवादी खेमे से संबद्ध थे। वह समभाव और मृदु न्यायप्रियता में विश्वास करते थे। उन्हें पूर्ण विश्वास था कि देश का पुनरुद्धार उत्तेजना के बवण्डरों में नहीं हो सकता।
वे साधन और साध्य दोनों की पवित्रता में विश्वास करते थे। इन्हीं विचारों से प्रभावित होकर गांधीजी उनके शिष्य बन गए।
इन्होंने 1889 ई. के इलाहाबाद कांग्रेस अधिवेशन के मंच से राजनीति में भाग लिया। 1897 ई. में उन्हें और वाचा को भारतीय व्यय के लिए नियुक्त वेल्बी आयोग के सम्मुख साक्ष्य देने को कहा गया।
वर्ष 1902 में वह बंबई संविधान परिषद के लिए और कालांतर में Imperial Legislative Council के लिए चुने गए।