अर्धनारीश्वर की कल्पना क्यों की गई होगी? आज इसकी क्या सार्थकता है?
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अर्धनारीश्वर की कल्पना क्यों की गई होगी? आज इसकी क्या सार्थकता है? Ardhnarishwar Ki Kalpana Kyon Ki Gayi Hogi? Aaj Iski Kya Sarthakta Hai?

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अर्द्धनारीश्वर (Ardhnarishwa) के द्वारा स्त्री और पुरुष के गुणों को एक कर यह बताया गया है, कि नर-नारी पूर्ण रूप से समान हैं, एवं उनमें से एक के गुण दूसरे के दोष नहीं हो सकते।

अर्थात् नरों में नारियों के गुण आएँ तो इससे उनकी मर्यादा हीन नहीं बल्कि उनकी पूर्णता में वृद्धि ही होती है।

आज इसकी जरूरत इसलिए है, कि पुरुष समाज वर्चस्ववादी है, और उसने यह समझ रखा है, कि पुरुष में स्त्रीयोचित गुण आ जाने पर स्त्रैण हो जाता है।

उसी प्रकार स्त्री समझती है, कि पुरुष के गुण सीखने से उसके नारीत्व में बट्टा लगता है।

इस प्रकार पुरुष के गुणों के बीच एक प्रकार का विभाजन हो गया है, तथा विभाजन की रेखा को लाँघने में नर और नारी दोनों को भय है।

लगता इसलिए अर्द्धनारीश्वर की जरूरत है। संसार में पुरुषों के समान ही स्त्रियाँ हैं।

जिस प्रकार पुरुषों को सूर्य की धूप पर बराबर अधिकार है, उसी तरह नारियों को भी यह अधिकार है।

पुरुष ने नारी को षड्यंत्रों के जरिये उसे अधीन कर रखा है। दिनकर इस पुरुष वर्ग एवं स्त्री वर्ग को समझना चाहते हैं, कि नारी-नर पूर्ण रूप से समान हैं।

पुरुष यदि नारियों के कुछ गुण अपना ले तो अनावश्यक विनाश से बच सकता है, और नारी पुरुषों के गुण अपना ले तो भय से मुक्त हो सकती है। 

इसीलिए अर्द्धनारीश्वर की कल्पना की गई है।

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