प्राचीनकाल में नालंदा विश्वविद्यालय(Nalanda University) विद्या, ज्ञान, कला-शिल्प एक साहित्य का प्रमुख केन्द्र था। यहाँ न केवल भारत के, वरन् एशिया महाद्वीप के छात्र विद्याध्ययन के लिए आते थे। लगभग छह सौ वर्षों तक नालंदा एशिया महाद्वीप का चैतन्य केन्द्र था।
यहाँ अध्ययन करने के लिए चीन के फाह्यान, युवानचांग(ह्ह्वेनसांग) तथा तिब्बत के लामा तारानाथ आए थे। अतः डॉ. राजेन्द्र प्रसाद के कथनानुसार नालंदा की वाणी एशिया महाद्वीप में पर्वत और समुद्रों के उस पार तक फैल गई थी।