19वीं शताब्दी से पूर्व खड़ी बोली हिन्दी के विकास पर प्रकाश डालें। 19Vi Shatabdi Se Purv Khadi Boli Hindi Ke Vikas Par Prakash Dalen
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19वीं शताब्दी से पूर्व खड़ी बोली हिन्दी के विकास पर प्रकाश डालें। 19Vi Shatabdi Se Purv Khadi Boli Hindi Ke Vikas Par Prakash Dalen.

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19वीं शताब्दी से पूर्व खड़ी बोली हिन्दी का समुचित विकास हुआ था। उस समय के खड़ी बोली हिन्दी के काल को विभिन्न भागों में बाँटा गया है। जैसे — आदिकाल, भक्तिकाल तथा रीतिकाल।

आदिकाल में खड़ी बोली हिन्दी का समुचित विकास हुआ। चंदवरदायी इस काल के कवि थे। उन्होंने पृथ्वीराज रासो नामक ग्रन्थ की रचना की।

भक्ति काल में भी खड़ी बोली हिन्दी का समुचित विकास हुआ। इस काल की मुख्य विशेषता ईश्वर भक्ति है। । तुलसी, सूर, मीरा ने सगुण ईश्वर राम, कृष्ण आदि की भक्ति की। वे सगुण काव्य के अन्तर्गत आते हैं।

निगुर्ण काव्य के अन्तर्गतः पुनः दो विभाजन मिलते हैं।

कबीर आदि संतों ने ज्ञान के बल पर ईश्वर साधना की। अतः इनके काव्य को ज्ञानमार्गी काव्य या संत काव्य कहा जाता है।

दूसरी ओर जायसी आदि कवियों ने प्रेम तत्व की आधार बनाकर कविता लिखी। अतः उनके काव्य को प्रेम काव्य की संज्ञा दी जाती है।

सगुण काव्य के अन्तर्गत भी रामभक्ति काव्य और कृष्णभक्ति काव्य नाम से दो काव्य धाराएँ चलती है।

रामभक्ति के मुख्य कवि तुलसी तथा कृष्णभक्ति के प्रमुख कवि सूर, तुलसी, नंददास, रसखान, मीरा आदि है।

रीतिकाल में भी खड़ी बोली हिन्दी का भी समुचित विकास हुआ। इस काल में तीन प्रकार के काव्य मिलते हैं। रीतिबद्ध, रीतिसिद्ध और रीतिमुक्त।

इस काल में कई प्रमुख कवियों ने खड़ी बोली हिन्दी के विकास के लिए प्रयास किया। इस काल में कई प्रमुख कवि हुए। जैसे— बिहारी, घनानन्द, पद्माकर, मतिराम तथा कवि भूषण इत्यादि।

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