वास्तव में रोमन साम्राज्य (Roman Empire) विभिन्न स्थानीय संस्कृतियों एवं भाषाओं के वैभव से सम्पन्न था। सभ्यता के उस अतीतकाल में रोमन समाज में महिलाओं की कानूनी स्थिति इतनी सुदृढ़ थी कि वैसी स्थिति आज अनेक देशों में भी देखने को नहीं मिलती है।
रोमन साम्राज्य एक विशाल साम्राज्य था। इसमें विभिन्न संस्कृतियों वाले क्षेत्र सम्मिलित थे। साम्राज्य के भिन्न-भिन्न भागों में अनेक सम्प्रदायों (Sects) का अस्तित्व था तथा अनेक स्थानीय देवी-देवताओं (God -Godess) की पूजा-अराधना की जाती थी। बोलचाल की अनेक भाषाएँ थीं तथा वेश-भूषा की विभिन्न शैलियों का प्रचलन था। साम्राज्य के एक भाग का भोजन दूसरे भाग के भोजन से भिन्न था।
इसी प्रकार सामाजिक संगठनों एवं उनकी बस्तियों में भी अनेक प्रकार की विविधताएँ थीं।उदाहरणस्वरूप निकटवर्ती पूर्व में आरासाइक भाषा समूह का प्रचलन था तो मिस्र में कॉण्टिक का उत्तरी अफ्रीका में प्यूनिक और बरबर तथा स्पेन एवं उत्तरी-पश्चिमी क्षेत्रों में कैल्टिक का बोलचाल की भाषा के रूप में प्रयोग किया जाता था।
उल्लेखनीय है कि इनमें से अनेक भाषायी संस्कृतियों (Relegions) की कोई लिपि नहीं थी और वे पूरी तरह मौखिक थी। तीसरी शताब्दी के मध्य तक बाइबिल का कॉस्टिक भाषा में अनुवाद हो चुका था किन्तु आर्मिनियाई भाषा का लिखना भी 5वीं शताब्दी में प्रारम्भ हुआ।
लातिनी भाषा का अनेक स्थानों पर व्यापक प्रसार हुआ और वह अनेक ऐसी भाषाओं, जिनका पहले से ही व्यापक प्रसार था, की लिखित भाषा बन गई ।
संक्षेप में इस प्रकार रोमन साम्राज्य में निम्नलिखित सांस्कृतिक विविधताएँ थीं, जो कई रूपों एवं स्तरों पर दृष्टिगत होती हैं, जो निम्नवत हैं—
(i) यहाँ अनेक धार्मिक सम्प्रदाय और देवी-देवता दिखाई देते हैं।
(ii) वेश-भूषा और सामाजिक संगठनों में भी रोमन साम्राज्य में विविधता दिखाई देती है।
(iii) यहाँ बोलचाल की अनेक भाषाएँ प्रचलित थीं परन्तु इनमें बहुत सी भाषायी संस्कृतियाँ पूर्णत: मौखिक थीं।