कृष्ण छिद्र (Black Hole) : न्यूट्रॉन तारे का भविष्य भी उसके द्रव्यमान पर निर्भर करता है। अनुमान के अनुसार भारी न्यूट्रॉन तारों का संकुचन अनिश्चित काल तक हो सकता है। इसी क्रम में जब m द्रव्यमान का एक न्यूट्रॉन तारा संकुचित होकर त्रिज्या r = 2 Gm / 2 (जहाँ c प्रकाश की चाल तथा G गुरुत्वाकर्षण नियतांक है) प्राप्त कर ले तब वह कृष्ण छिद्र (Black Hole) बन जाता है।
सर्वप्रथम मिचेल (Mitchell) ने कृष्ण छिद्र के अस्तित्व की कल्पना की थी। कृष्ण छिद्र अपने पृष्ठ से किसी चीज का, यहाँ तक कि प्रकाश का भी पलायन नहीं होने देते हैं। कारण यह है कि कृष्ण छिद्रों में अत्यधिक आकर्षण बल होता है छिद्रों से प्रकाश भी पलायन नहीं कर सकता है इसीलिए कृष्ण छिद्र अदृश्य होते हैं, वे देखे नहीं जा सकते हैं। इसकी उपस्थिति को, आकाश में उसके पड़ोसी पिंडों पर उसके गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र के प्रभाव द्वारा केवल महसूस किया जा सकता है।