लेखक शरद जोशी के अनुसार भारतीय रेलें कहीं-न-कहीं हमारे मन को छूती हैं। रेल यात्रा के क्रम में जब एक ऊँघता हुआ यात्री दूसरे ऊँघते हुए यात्री के कंधे पर अपना सिर टिका देता है, तब ऐसा लगता है कि दोनों साथी हैं। पर ऐसी बात नहीं, दोनों परस्पर अपरिचित हैं। दोनों की ऐसी निकटता भारतीय रेलों के अतिरिक्त और कहीं देखने को नहीं मिल सकती।
अतः इसमें दो मत नहीं कि रेलें मनुष्य को मनुष्य के निकट लाती हैं।