उत्तर : भारतीय रेलें हमें अपना कर्म करना सिखाती हैं। वे सिखाती हैं। कि केवल कर्म करो, फल की चिन्ता मत करो। जिसे यात्रा करनी है, वह करेगा ही। बर्थ पर लेटकर जाएगा, पैर पसारकर जाएगा। जिसमें मनोबल है, आत्मबल है, शारीरिक बल या दूसरे तरह का बल है, उसे यात्रा करने से कोई रोक नहीं सकता। भारतीय रेलें हमें जीवन जीना सिखाती हैं। रेल के डिब्बे में जो चढ़ गया उसी की जगह, जो बैठ गया उसी की सीट, जो लेट गया उसी की बर्थ हो जाती है। भारतीय राजनीति में जो यह सब कर सकता है, तो वह राज्य का मुख्यमंत्री भी हो सकता है। जो शराफत दिखाता है, अनिर्णय की स्थिति में रहता है, वह कतार में खड़ा रहता है, प्रतीक्षा सूची में पड़ा रहता है। मनुष्य को जीवन जीने के लिए आत्मबल चाहिए।