बच्चों की बातचीत के दौरान हमें धैर्य रखना चाहिए - बच्चे कभी-कभी नये वाक्य रचना करते हैं। शब्द गलत बोलते हैं लेकिन भाव सही रहता है। बच्चों के छोटे से संवाद का विश्लेषण करें तो सीखने की उन सम्भावनाओं को पहचान सकेंगे जो बातचीत के जरिए ही इन दो बच्चों को उपलब्ध मौका न मिलता कि बहन जी पहले भी अंगूठी पहनती थी ।
यदि यह बातचीत न हुई होती तो दूसरे बच्चे को पुरानी और नई अंगूठी में फर्क देखने का अवसर न मिलता, न ही यह समझने का अवसर मिलता कि 'छोटी' और 'पतली' में क्या भिन्नता है। बातचीत के इन उपयोगों के प्रति सचेत होने के लिए जरूरी है कि हम बच्चों की बात सुनने की आदत डालें।