सिपाही की माँ' शीर्षक एकांकी में मोहन राकेश ने प्रभावशाली संवाद योजना द्वारा माँ के मानस पटल पर अंकित घटनाक्रम को बड़े ही सुव्यस्थित ढंग से चित्रित किया है। मानक का लड़ाई के मैदान में जाना और पत्र का न आना चिंता का कारण बना हुआ है। माँ का मुन्नी से पूछना- क्योंरी, डाकवाली गाड़ी ही थी ? यह उसके पुत्र के प्रति जिज्ञासा और उसकी व्यग्रता की एक झलक प्रस्तुत करता है। मुन्नी की शादी की चिंता, कुंती का कहना कि मुन्नी की शादी के लिए घर वर देखो, उसकी चिंता में वृद्धि करता है। वर्मी लड़की का वर्मा की स्थिति का वर्णन करना और माँ का कहना है कि क्योंरी, ब्रम्मा से यहाँ कितने दिन का पैदल रास्ता है उसकी मानसिक व्यग्रता को दर्शाता है। उसकी मानसिक स्थिति अच्छी नहीं है। उसके मानस पटल पर जो विषाद की रेखाएँ अंकित हो गई हैं उसका जीवंत रूप वह सपना में देखती है। वस्तुतः लेखक ने संवाद में गवई भाषा का प्रयोग किया है जो एकांकी को सजीव बना देता है।