लिखना सीखने के लिए फर्श एक बढ़िया साधन है। आप उस पर बड़े-बड़े अक्षरों में लिख सकते हैं।
फर्श पर लिखना सस्ता भी है क्योंकि आपको सिर्फ कोयला या चाक या स्थानीय रंग खरीदना होगा। परेशानी सिर्फ यही है कि फर्श को बाद में धोना पड़ता है।
इस काम में यदि आप बच्चों को भागीदार बना सकें तो लिखना सीखने की प्रेरणा दुगुनी हो जायेगी। कुछ माता-पिता फर्श की धुलाई में बच्चों की साझेदारी से नाराज हो सकते हैं।
यह अध्यापक को ही सोचना है कि वे इस नाराजगी से कैसे पेश आएँ ।
लिखना शुरू करने के ये तरीके मात्र नहीं है। बच्चों के साथ काम करने वाले लोगों ने अन्य कई विधियों के बारे में सुना होगा। सबसे अच्छी विधि वर्णनमाला के अक्षर लिखाने की है।
चाहे ब्लैक बोर्ड पर बड़े आकार में वर्णमाला लिखें या गत्ते-पत्ते के अक्षर को या प्राईमर की नकल करने को कहें, एक बात हमें याद रखनी चाहिए - यह कि वर्णमाला में कोई अर्थ नहीं होता। इसलिए वर्णमाला पर अत्यधिक जोर देना लेखन को सार्थक संवाद का माध्यम समझने से बच्चों को निरुत्साहित कर सकता है, पर जब एक बार अध्यापक शब्दों और अर्थ के बीच मजबूत पुल बना चुका हो तो वर्णमाला का परिचय बहुत उपयोगी हो सकता है।
वर्णमाला कक्षा की एक दीवार पर लटकी रहे या एक लम्बी पट्टी के रूप में चिपका ही गई हो तो वह पढ़ना लिखना सीखने की प्रक्रिया में सहायक स्रोत की भूमिका निभा सकती है।
यांत्रिकी ढंग से वर्णमाला सिखाने के कई विकल्प हैं। उदाहरण के लिए आप शब्दों की एक लम्बी सूची बनाकर रख लीजिए और उनमें से उन थोड़े से शब्दों को बच्चों के सामने रखिए जिनका शुरू का एक अक्षर हो। बच्चों का ध्यान इस बात की ओर खींचकर उनसे कहें कि वे ऐसे अन्य अक्षर ढूँढे जो दिये गये शब्दों में एक से गतिविधि के समय पिछली बार के शब्दों को दुहराइए।
धीरेधीरे सामान्य व्यवहार के शब्दों का भण्डार इस तरह बढ़ने पर आप उन्हें विभिन्न विशेषताओं (जैसे-लम्बाई, चौड़ाई आदि) के आधार पर वर्गीकृत कीजिए और एक वर्ग के शब्दों को बड़े कागज पर लिखकर दीवार पर चिपका दीजिए। कागज ऐसी जगह चिपकाइए जहाँ पर ये साफ-साफ दिखाई दे सकें । यह बात मैं कहने लायक भी नहीं समझता। यदि मैं ऐसे कई स्कूलों में नहीं गया होता जहाँ पर तस्वीरें या चार्ट बच्चों की पहुँच से बहुत ऊपर टंगे रहते हैं।
ऐसी सामग्री जो बच्चों से बहुत ऊपर रखी गयी हो, न केवल व्यर्थ जाती है बल्कि बच्चों का अपमान भी करती है ।