पढ़ना किसी भी चीज का एक मुख्य अंग होता है, जिसके परिणामस्वरूप हम उसे आगे बढ़ाने का प्रयास करते हैं। यदि कोई भी क्रियात्मक दृष्टिकोण सरल से कठिन की ओर जाता है, तो कार्य आसानी से सम्पादित होता है, लेकिन किसी कार्य को कठिन से सरल की ओर लाएँ तो आसानी में नहीं आता । कहने का आशय यह है कि हमें कार्य को सरल से कठिन की ओर करना चाहिए, ठीक वैसे ही पढ़ने की शुरुआत वर्णमाला से करनी चाहिए।
क्योंकि ये सरल होता है और बच्चे आसानी से समझ जाते हैं इनके कुछ कारण निम्नलिखित हैंसे समझ
- सरल होता है - वर्णमाला सरल होती है, जिसके फलस्वरूप बच्चे इसे जल्दी सीख जाते हैं तथा बच्चों को वर्णमाला अपनी ओर खींचने का कार्य करती है, बच्चे आसानी से सीखते हैं और मजे के साथ सीखते हैं। वर्णमाला को हम बच्चों को जल्दी से सिखा सकते हैं क्योंकि बच्चे उसमें रुचि लेते हैं ।
- सीखने का उपयुक्त तरीका - वर्णमाला सीखने के कारगर एवं सबसे उपयुक्त तरीकों में से एक है। यह सीखने की सर्वोत्कृष्ट या सर्वोत्तम तरीकों में से एक माना जाता है। इस तरीके से सीखने एवं सिखाने में काफी वृद्धि एवं सीखने की गति से बढ़ोत्तरी होती है। बच्चों को इस प्रक्रिया से बाँधकर रखा जाता है। बच्चे बड़े ही रोचत तथ्यों को जानने, जैसे- वर्णमाला को पढ़ने का तरीका, उच्चारण के तरीके को विभिन्न तरीकों से जानने का प्रयास करते हैं।
- वर्ण आधारित शिक्षण- इस सिद्धांत के अनुसार बच्चों को वर्ग के आधार पर पढ़ना सिखाया जा सकता है।इसके लिए हमें इतिहास को देखना होगा कि इंसानों ने सबसे पहले कैस सीखा, पहले बच्चे को बोले गये शब्दों को उनसे बनने वाली ध्वनि इकाइयों को टुकड़ों-टुकड़ों में बाँटकर सिखाएँ फिर उन्हें अक्षर सिखाएँ जिस प्रकार 'क' सिखाने के लिए बहुत से अक्षर में से 'क' की पहचान करना सिखाएँ ।